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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
2. मथुरा से श्री वसुदेव का संदेश लेकर दूत का आगमन और नन्द जी के द्वारा उसका सत्कार
यह सुनते ही व्रजेन्द्र की आँखों में झर-झर करता हुआ अश्रु प्रवाह निकल पड़ता है। पर दूत ने अतिशय शीघ्रता से कहा “देव! आगे की बात सुनें, अद्भुत आश्चर्यमयी घटना है। बालिका कंस के हाथ से छूटते ही आकाश में उड़ गयी। दूसरे ही क्षण बालिका का रूप बदला। वह अष्ट भुजा देवी के रूप में परिणत हो गयी। वास्तव में वे देवी ही थीं। ओह! दिव्य माला, दिव्य वस्त्र, दिव्य चन्दन एवं दिव्य मणिमय आभूषणों से सुसज्जित देवी का वह रूप देखने ही योग्य था। आठों भुजाओं में आठ आयुध- धनुष, त्रिशूल, बाण, ढाल, खड्ग, शंख, चक्र, गदा सुशोभित है। इतना ही नहीं, उनके चारों ओर सिद्ध, चारण, गन्धर्व, अप्सराएँ, किनर, नाग भेंट अर्पण कर रहे थे, अञ्जलि बाँधकर स्तुति कर रहे थे। देवी ने कहा- ‘मूर्ख! मुझे मार कर क्या लेगा? तेरा जीवन समाप्त करने वाला, तेरे पूर्व जन्म का वैरी तो कहीं आ चुका, प्रकट हो चुका। निर्दोष बालकों को अब मत मारना।’
व्रजेश्वर अतिशय आश्चर्य में भरकर सुन रहे हैं। दूत कहता जा रहा है - “देवी के वचनों ने कंस के स्वभाव में कुछ क्षणों के लिये एक विलक्षण परिवर्तन ला दिया। वह सचमुच पश्चात्ताप की आग में जल उठा। मेरे महाराज वसुदेव के एवं महारानी श्री देवकी के चरणों में लुट पड़ा। उस समय उसकी आर्ति सचमुच हृदय को पिघला देने वाली थी। महाराज एवं महाराज्ञी का दयार्द्र हृदय विगलित हो उठा। ऐसे नृशंस को भी उन दोनों ने क्षमा दान दे ही दिया। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीमद्भा. 10। 4। 12)
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