श्रीनारायणीयम्
पञ्चमदशकम्
भूमान्! आपके ही बल से सात्त्विक अहंतत्त्व ने ही मन, बुद्धि और अहंकार से संयुक्त चित्त नामक वृत्ति से समन्वित अंतःकरण की रचना की। विभो! रजोगुण-प्रधान तैजस अहंकार से पञ्चज्ञानेन्द्रिय तथा पञ्चकर्मेंद्रिय- यों दस इंद्रियों का समुदाय उत्पन्न हुआ। मरुत्पुरपते! पुनः आपकी प्रेरणा से उसके तामस अंश से आकाश का तन्मात्रस्वरूप शब्द प्रकट हुआ।।7।।
विभो! उस शब्द से आकाश, आकाश से वायु-गुण स्पर्श, स्पर्श से वायु, वायु से तेजोगुण रूप, रूप से तेज से जल का गुण रस, रस से जल, जल से पृथ्वी-गुण गंध और गंध से पृथ्वी की रचना आपने ही की है। षडैश्वर्यसंपन्न माधव! यों पूर्व-पूर्व के सम्मेलन से उत्तरोत्तर आदि-आदि के धर्मों से समन्वित इस भूतसमूह को आपने ही तामस अहंकार से प्रकट किया है।।8।। |
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