श्रीनारायणीयम्
पञ्चाशत्तमदशकम्
वत्सासुर तथा बकासुर का वध
श्रीमन्! देव! तदनन्तर जिसमें झुंड के झुंड भौंरे फूलों पर मँडरा रहे थे, उस मनोहर वृन्दावन में आप बछड़ों को चराने के लिए समुत्सुक होकर हलधर तथा ग्वालबालों के साथ श्रृंगीवाद्य, मुरली और बेंत धारण करके विचरने लगे। आपके शरीर के कान्ति नेत्रों को मोह लेने वाली थी।।1।।
कमलापते! जब से आपने भूमि की रक्षा करने वाले तथा लक्ष्मी के कर कमलों द्वारा लालित अपने पावन चरणयुगल को वृन्दावन की पावन भूमि पर रखा, तब से वहाँ वृक्ष, लता, जलाशय, धरती, पर्वत और क्षेत्र आदि कौन-सी ऐसी वस्तु थी, जो अपनी-अपनी संपत्तियों से परिपूर्ण हो अद्भुत शोभा नहीं पा रही हो।।2।। |
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