श्रीनारायणीयम्
पञ्चमस्कन्धपरिच्छेदः
विंशतितमदशकम्
ऋषभ-चरित
स्वायम्भुव मनु के ज्येष्ठ पुत्र प्रियव्रत के प्रिय पुत्र राजा आग्नीध्र हुए। उनसे नाभि की उत्पत्ति हुई। महाराज नाभि आपकी ही प्रसन्नता के लिए यज्ञकर्म कर रहे थे। उसी यज्ञ में उन्हें अभीष्ट दाता आपका दर्शन हुआ।।1।।
विश्वमूर्ते! उस समय मुनीश्वरों ने आपकी स्तुति की और राजा नाभि के लिए आपसे आपके ही समान पुत्र की याचना की, तब आप ‘मैं स्वयं ही राजा के पुत्र के रूप में उत्पन्न होऊँगा।’ यों कहकर उस यज्ञाग्नि में अंतर्हित हो गये।।2।।
तदनन्तर नाभि की प्रियतमा पत्नी मेरुदेवी के गर्भ से आप अपने अंशरूप से प्रकट हुए। उस समय आपका नाम ऋषभ रखा गया। आप अपने अमानुष गुणों तथा प्रभावों के द्वारा सभी लोगों की आनन्दित कर रहे थे।।3।। |
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज