श्रीनारायणीयम्
सप्तषष्टितमदशकम्
श्रीकृष्ण का अन्तर्धान, गोपियों द्वारा उनका अन्वेषण तथा फिर उनका प्राकट्य
आप उच्छलनशील परमानन्द स्वरूप हैं, आपके साथ भोग लीला का आस्वादन करके असीम आनन्द-सिन्धु में निमग्न हुई कमलनयनी गोपांगनाओं को महान् अभिमान हो गया।।1।।
गोविन्द! ‘विश्व-मनोऽभिराम लक्ष्मीपति श्यामसुन्दर मुझमें, केवल मुझमें निश्छल भाव से अनुरक्त हैं।’- इस प्रकार उन सब गोपियों को अभिमान से पूरित देख आप वहाँ अन्तर्धान हो गये।।2।।
मुरारे! श्रीराधा नाम वाली गोपांगना के मन में गर्व का उदय नहीं हुआ। इसीलिए वे आपको अत्यंत प्यारी हैं। अतएव उन्हीं के साथ स्वेच्छानुसार विहार करने के लिए आप उन्हें लेकर बहुत दूर चले गये।।3।। |
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