श्रीनारायणीयम्
द्वयशीतितमदशकम्
उषा-परिणय, बाणासुर-युद्ध और नृग के शापमोक्ष का वर्णन
रुक्मिणी-नन्दन प्रद्युम्न को, जो आपके ही अंश थे, शम्बरासुर हर ले गया। कुछ दिनों के बाद प्रद्युम्न शम्बरासुर का वध करके अपनी रति नाम्नी भार्या के साथ द्वारका को लौट आये। पुनः उन्होंने रुक्मी की सुन्दरी कन्या का अपहरण किया। प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध हुए, जो गुणों के खजाने ही थे। उन्होंने रुक्मी की पौत्री रोचना के साथ विवाह किया। अनिरुद्ध के विवाह में आप वहाँ गये थे, उसी समय जुआ खेलते समय वैर हो जाने के कारण बलराम जी ने रुक्मी को मार डाला। (‘अपि’ पद से कलिंगराज के दाँतों को भी उखाड़ लिया- यह भी द्योतित होता है)।।1।।
भगवन्! बलि का पुत्र बाणासुर था, उसके हजार भुजाएँ थीं और वह महान् शिवभक्त था। उसके उषा नाम की एक श्लाघनीय पुत्री थी। वह आपके पौत्र इन अनिरुद्ध का, जिन्हें उसने पहले कभी देखा भी नहीं था, स्वप्न में अनुभव कर विरहातुर हो गयी।।2।। |
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