श्रीनारायणीयम्
शततमदशकम्
भगवत्-केशादि पादान्त रूप का वर्णन
भगवन्! परमानन्द में निमग्न हुआ मैं अपने समक्ष एक प्रभामण्डल देख रहा हूँ। तत्पश्चात् उसके मध्यभाग में मुझे आपका वह दिव्य किशोर वेष दृष्टिगोचर हो रहा है, जो मटर पुष्प की घनीभूत श्यामलता सदृश मन को लुभाने वाला, नवयौवन के समारम्भ से अत्यंत अभिराम, परमानन्दरूपी रस के आस्वादन से रोमाञ्चित शरीर वाले नारद आदि देवर्षियों द्वारा समावृत तथा मूर्तिमती उपनिषद्-रूपिणी सुंदरियों से सुशोभित है।।1।।
आपका वह त्रिभंग ललित वेष नीली कान्ति से युक्त निर्मल सघन घुँघराली अलकों से सुशोभित, रत्नमय आभूषणों से अतिशय कमनीय, अपनी प्रभा बिखेरने वाले मयूर-पिच्छ से समावृत, मन्दार-पुष्पों की माला से परिवेष्टित तथा लंबी मोटी चोटी से विभूषित है, मैं उस रूप को तथा ललाट में बाल-चंद्र की वीथी-सदृश अतिशय शोभाशाली सुकोमल उज्ज्वल वर्ण के ऊर्ध्वपुण्ड्र को भी देख रहा हूँ।।2।। |
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज