श्रीनारायणीयम्
अष्टपञ्चाशत्तमदशकम्
इषीक-वन में गौओं का दावानल से उद्धार
ग्वालबालों के समुदाय के साथ जब आप क्रीड़ा-विहार में व्यग्र थे और प्रलम्बासुर के वध के कार्य में आपको अधिक विलम्ब हो गया, तब स्वेच्छानुसार विचरने वाली गौएँ नयी-नयी घास के लिए उत्सुक हो दूर दूर तक चरती हुई किसी ऐषीक नामक वन में जा पहुँचीं।।1।।
जहाँ निदाघ (ग्रीष्म)- की उग्रता का पता नहीं चलता है, उस वृन्दावन की सीमा से बाहर निकलकर वे सारी धेनुएँ इस ऐषीकवन (अथवा मुञ्जाटवी) आ पहुँची थीं। एक तो वे आपके विरह से व्याकुल थीं, दूसरे उष्णता से पूर्ण ग्रीष्मऋतु के ताप के प्रसार से उनके सारे अंग पसीने में डूब रहे थे। अतः उस वन में वे स्तब्ध खड़ी रह गयीं।।2।। |
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