श्रीनारायणीयम्
पञ्चपञ्चाशत्तमदशकम्
कालियोपाख्यान
भगवन्! तदनन्तर आपने यमुना-जल में प्रवेश करके उस भयंकर नाग का निवारण करने के लिए निश्चय किया। इस विचार से आप शीघ्र ही एक तटवर्ती कदम्बवृक्ष के निकट गये। उस वृक्ष के सारे पत्ते विषयुक्त वायु से स्पर्श से सूख गये थे।।1।।
तब आप नूतन पल्लवतुल्य मनोहर कान्ति वाले अपने चरण कमलों द्वारा उस कदम्बवृक्ष पर चढ़कर बड़ी ऊँचाई से चक्राकार घूमती हुई भयंकर लहरों से व्याप्त उस कुण्ड के जल में कूद पड़े।।2।।
उस समय त्रिलोकी का भार धारण करने वाले आपके भारी भार से जिसका जल विकम्पित तथा वृद्धिंगत हो उठा था और जिसमें से स्पष्ट महान् घोष प्रकट हो रहा था, उस यमुना ने तुरंत ही सौ धनुष तक की तटभूमि को जलमग्न कर दिया।।3।। |
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