श्रीनारायणीयम्
एकषष्टितमदशकम्
द्विज-पत्नियों का मोक्ष
तदनन्तर एक दिन आप वृन्दावन में अत्यंत दूर एक वन में ग्वालबालों और गौओं के साथ गये। उस समय आप अपने हृदय के भीतर अपनी अतिशय भक्ता द्विजांगनाओं के समुदाय पर अनुग्रह करने का आग्रह लिए हुए थे।।1।।
तत्पश्चात् उस वन के भीतर, जहाँ कोई घर द्वार नहीं था, गोपकिशोरों को भूख-प्यास से पीड़ित देख आपने उन्हें पास ही यज्ञानुष्ठान में लगे हुए ब्राह्मणों के यहाँ भात माँग लाने के लिए भेजा।।2।।
प्रभो! वे गोपकुमार गये और आप का नाम बताकर वहाँ भात माँगने लगे। परंतु उन श्रेष्ठ ब्राह्मणों ने श्रुति में स्थिर (श्रवण या श्रुतिपाठ में दृढ़) होकर भी अश्रुति (नहीं सुनने या श्रुति को न जानने)- का अभिनय (नाट्य) करके उन्हें कोई उत्तर नहीं दिया।।3।। |
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज