श्रीनारायणीयम्
पञ्चषष्टितमदशकम्
रासक्रीड़ा के लिए गोपियों का आगमन
जिस दिन गोपियों के कात्यायनी-पूजन का नियम समाप्त हुआ था, उस दिन आपने उनसे कहा था- ‘आगामी शरद ऋतु की रातों में तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा।’ तदनुसार आप प्रेमोत्सव संपादित करने के कार्य में प्रवत्त हुए। चंद्रमा की स्निग्ध चाँदनी से जहाँ संपूर्ण दिशाएं शीतल हो गयी थीं, उस यमुना तटवर्ती वन प्रांत में आपने मुरली बजायी।।1।।
विभो! जिनमें स्वर-मण्डल सुस्पष्ट प्रकट हो रहे थे, उन मूर्च्छनाओं द्वारा समस्त भुवनों में व्याप्त हुए आपके वेणुनाद को सुनकर तरुणी गोप-किशोरियाँ वैसे किसी अपूर्व चित्त-विमोह को प्राप्त हुईं।।2।। |
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