श्रीनारायणीयम्
षडशीतितमदशकम्
शाल्व और दन्तवक्त्र का उद्धार तथा महाभारत युद्ध का वर्णन
रुक्मिणी-विवाह के अवसर पर यादवी सेना ने शाल्व को पराजित कर दिया था। जिससे दुःखी होकर उसने चंद्रचूड भगवान् शंकर की आराधना की और उनसे सौभ नामक विमान प्राप्त किया। जब आप कुरुदेश की राजधानी इंद्रप्रस्थ गये हुए थे, उसी समय वह मायावी आपकी द्वारकापुरी पर आक्रमण करके उसे नष्ट-भ्रष्ट करने लगा। तब प्रद्युम्न ने समस्त यदुवीरों के साथ नगर से बाहर निकलकर उसका सामना किया और उसके मंत्री उग्र पराक्रमी द्युमान को नष्ट कर दिया। इस प्रकार यह युद्ध सत्ताईस दिनों तक चलता रहा।
इसी बीच आप बलराम जी के साथ द्वारका लौट आये और तुरंत ही रणभूमि में जाकर, जिसकी सारी सेनाएँ प्रायः नष्ट हो चुकी थीं, उस सौभपति शाल्व का सामना करने लगे। उसने आप पर गदा से वार किया, जिससे शार्गंधनुष आपके हाथ से गिरा गया। पुनः उसने मायानिर्मित आपके पिता वसुदेव जी को आपके देखते-देखते मार डाला। कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि उस समय उसकी उस माया को आधे क्षण आप भी नहीं समझ सके। परंतु उनका यह कथन ठीक नहीं है- इस प्रकार कहकर व्यास जी ने ही निषेध कर दिया है।।2।। |
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