श्रीनारायणीयम्
एकचत्वारिंशत्तमदशकम्
पूतना के शव का दाह और गोपियों का आनन्द
नन्द जी वसुदेव जी के वचन को सुनकर व्रज को लौट रहे थे। मार्ग में जिसने अपने शरीर के भार से समस्त वृक्षों को छिन्न-भिन्न कर दिया था, ऐसे किसी अद्भुत देखकर भयभीत-चित्त हो गये और आपकी शरण में गये।।1।।
तदनन्तर गोपियों के मुख से पूतना के वृत्तान्त को सुनकर सभी गोपों ने भय और विस्मय से सहसा अपने नेत्र बंद कर लिये। फिर उन्होंने आपके द्वारा गिराये गए उस भयंकर पिशाच-शरीर को फरसों से टुकड़े-टुकड़े करके दूर ले जाकर उसका दाहसंस्कार किया।।2।।
आपके द्वारा पान किये जाने के कारण जिसके स्तन पवित्र हो गया था, उसके उस शरीर से उत्तम सुगन्धयुक्त धूम निकलने लगा, जो आकाश में ऊँचे तक उठा हुआ था और ऐसी शंका उत्पन्न कर रहा था कि क्या यह अगुरु का धुँआ है अथवा यह चंदन या गुग्गुल का धुआँ तो नहीं है?।।3।। |
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