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भगवद्रूप तथा भगवद्भक्ति का वर्णन
- सूर्यस्पर्धिकिरीटमूर्ध्व तिलकप्रोद्भासिफालान्तरं
- कारुण्याकुलनेत्र मार्द्रहसितोल्लासं सुनासापुटम्।
- गण्डोद्यन्मकराभकुण्डलयुगं कण्ठोज्ज्वलत्कौस्तुभं
- त्वदरूपं वनमाल्यहार पटलश्रीवत्सदीप्रं भजे।।1।।
जिसका किरीट अपनी प्रभा से सूर्य की भी स्पर्धा कर रहा है, जिसका भालप्रदेश ऊर्ध्वपुण्ड्र तिलक से उद्भासित हो रहा है, जिसके नेत्र करुणासिन्धु से परिपूर्ण हैं, प्रेमार्द्र होने के कारण जो मन्द मुस्कान से युक्त है, जिसकी नासिका परम मनोहर है, जिसके गण्डस्थल में दो लटकते हुए मकराकृति कुण्डल प्रतिबिम्बित हैं, कण्ठप्रदेश कौस्तुभमणि की प्रभा से जगमगा रहा है तथा जो वनमाला, हारसमूह और श्रीवत्स से उद्दीप्त हो रहा है, आपके उस रूप का मैं ध्यान करता हूँ।।1।।
- केयूरांगदकंकणोत्तम महारत्नांगुलीयांकित-
- श्रीमद्वाहुचतुष्कसंगत गदाशंखारिपंकेरुहाम्
- कांचित काञ्चनकाञ्चिलाञ्छित लसत्पीताम्बरालम्बिनी-
- मालम्बे विमलाम्बुजद्युतिपदां मूर्तिं तवार्तिच्छिदम्।।2।।
जिसकी शोभायमान चारों भुजाएँ केयूर, अंगद, कंकण, बहुमूल्य हार तथा रत्ननिर्मित अँगूठियों से अलंकृत और गदा, शंख, चक्र एवं कमल धारण किये हुए हैं, जो सुवर्ण की करधनी के चिह्न से सुशोभित चमकीला पीताम्बर धारण करने वाली है, जिसके चरणों की द्युति निर्मल कमल के सदृश है तथा जो भक्तों की पीड़ा का छेदन करने वाली है, आपकी किसी ऐसी अनिर्वचनीय मूर्ति का मैं आश्रय ग्रहण करता हूँ ।।2।।
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