श्रीनारायणीयम्
पञ्चमदशकम्
इस प्रकार माया के कार्यों में यह महतत्त्व स्वयं त्रिगुणात्मक होने पर भी सत्त्वप्रधान है। यही इस जीव में ‘मैं निर्विकल्प-मनुष्यत्वादि विशेषणों से रहित हूँ’ इस प्रकार के ज्ञान का निष्पादन करने वाला है। विष्णो! आपकी प्रेरणा से उसी महत्तत्त्व ने ऐसे अहंतत्त्व का निर्माण किया है जो इस जीव में ‘मैं सविकल्प हूँ’ ऐसे ज्ञान का उत्पादक, त्रिगुणों द्वारा परिपोषित तथा अतिशय तमःप्रधान है।।5।।
यों महत्तत्त्व से प्रादुर्भूत हुए उस अहंतत्त्व ने उत्पन्न होकर पुनः सत्त्व-रज-तम यों त्रिगुणक्रम से क्रमशः वैकारिक, तैजस, तामस स्वरूप धारण करके सत्त्वात्मक वैकारिक अंहतत्त्व के द्वारा दिक्, वायु देवता, सूर्य, वरुण और अश्विनी कुमार (जो क्रमशः श्रोत्र त्वक्, चक्षु, जिह्वा और घ्राण- इन ज्ञानेंद्रियों के अधिष्ठातृ देवता हैं) तथा अग्नि, इंद्र, भगवान विष्णु, मित्र और प्रजापति (जो क्रमशः वाक, पाणि, पाद, पायु और उपस्थ- इन कर्मेंन्द्रियों के अधिष्ठाता हैं) एवं चंद्र, ब्रह्मा, श्रीरुद्र और क्षेत्रज्ञ (जो मन, बुद्धि अहंकार, चित्त- इस अंतःकरण चतुष्टय के देवता हैं) आदि इंद्रियों के अधिष्ठातृ-देवताओं को उत्पन्न किया।।6।। |
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