|
निशा ढल जाती है। उषा के शीतल सुखद स्पर्श से श्रान्त हुए गोपों में, गोपसुन्दरियों में नवीन स्फूर्ति का संचार हो जाता है, पर इतने समय में मैया यशोदा तो केवल एक ही कार्य करती रहीं हैं। उन खिलौनों का कभी पेटिका में भर देतीं, फिर निकालकर बिखेर देतीं, फिर सजा देतीं, फिर क्रमशः निकालकर बाहर छोड़ देतीं। बीच-बीच में नीलमणि के शयनपर्यंक के समीप जाकर देख अवश्य आतीं। श्रीरोहिणी जी आकर जब यह कार्य भी मैया के हाथ से ले लेती हैं, तब कहीं उन्हें भान होता है कि भुवनभास्कर उदय होने ही जा रहे हैं। यात्रा से पूर्व राम एवं नीलमणि को स्नान कराकर, विभूषित कर, कलेवा कराकर मैया को प्रस्तुत कर रखना है, यह स्मृति भी उन्हें श्रीरोहिणी ही दिलाती हैं और तब वे शयनागार में जाकर नीलमणि को जगाने लगती हैं-
- जागौ, मोहन! भोर भयौ।
- फूले कमल, कुमुद मुद्रित भए, तमचुर कौ सुर हारि गयौ।।
- टेरत ग्वाल-बाल सब ठाढ़े, पूरब सौं पतंग उदयौ।
- सुनत बचन जागे नँदनंदन, सूर जननि तब उछँग लयौ।।
|
|