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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
26. स्वयं यशोदा के द्वारा दधिमन्थन तथा श्रीकृष्ण का जननी को रोककर उनका स्तन्य पान करना
किंतु इस बार तो श्रीकृष्णचन्द्र ने नेती को मन्थनदण्ड से निकालकर दूर फेंक दिया तथा जननी की गोद में जा बैठे। प्रेमविवश जननी ने भी अपने कोटि-कोटि प्राणप्रिय नीलमणि के मुख में स्तनाग्र दे दिया। नीलमणि स्तनपान करने लगे। जिस समय श्रीकृष्णचन्द्र ने मन्थनदण्ड, दधिभाण्ड एवं नेती को स्पर्श किया था, उस समय यशोदारानी का आनन्दसिन्धु तो उच्छलित होने लगा था, पर क्षीरसिन्धु, मन्दर एवं वासुकि के हृदय काँप उठे थे। तीनों को अतीत सिन्धुमन्थन की स्मृति हो आयी थी। विस्फारित नेत्रों से वे श्रीकृष्णचन्द्र की यह लीला देख रहे थे; देख-देखकर आश्चर्य कर रहे थे-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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