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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
2. मथुरा से श्री वसुदेव का संदेश लेकर दूत का आगमन और नन्द जी के द्वारा उसका सत्कार
उन गीले वस्त्रों को निचोड़े बिना ही दूत चल पड़ा; क्योंकि पता नहीं, इतने में ही कोई घाट पर आ जाए, पूछ बैठे - कौन हो? कैसे आये? कहाँ जाओगे? पर आज व्रज में किसी ने भी उसे नहीं टोका। टोकता ही कौन! भैरी-दुन्दुभि आदि वाद्यों की तुमुल ध्वनि में, नृत्य-गीत के राग-रंग में व्रजपुरवासी आत्म विस्मृत हो रहे हैं, उनमे किसी आगन्तुक का अनुसंधान रखने की शक्ति ही कहाँ है। दूत निर्बाध व्रजपुर की अनुपम शोभा निहारता हुआ आगे बढ़ रहा है। पुर का प्राचीर इन्द्र नीलमणि निर्मित है, मरकत मणि रचित गृहावली है, आच्छादन (छत) सुवर्णमय हैं, स्तम्भों का निर्माण प्रवाल से हुआ है, द्वार समूह पद्मराग मणि के हैं। सर्वत्र मणि दीपों की पंक्तियाँ जगमग-जगमग कर रही हैं। कोटि-कोटि गोराशि विभिन्न आभूषणों से विभूषित हो कर गोष्ठ में खड़ी है; कोटि-कोटि गोवत्स-समूह व्रज के आनन्द कलरव से प्रभावित होकर उछल रहे हैं; विविध श्रृंगार से सजे हुए गोपों के, अद्भुत अलंकारों से आभूषित व्रजांगनाओं के दल-के-दल नृत्य गीत में संलग्न हैं। दूत देख कर चकित रह गया। इससे पूर्व कितनी बार संदेश लेकर वह व्रज में आया है, पर आज की अनुपम शोभा देख कर चकित रह गया। इससे पूर्व कितनी बार संदेश ले कर वह व्रज में आया है, पर आज की अनुपम शोभा देख कर तो वह एक क्षण के लिये भ्रमित हो गया - क्या नन्द व्रज में दिव्य गोलोक की सम्पदा का विकास तो नहीं हो गया है ? दूत के पैरों में चलने की शक्ति नहीं रही, वह स्तब्ध खड़ा रह गया। वास्तव में तो बड़ भागी दूत का यह भ्रम नहीं है, उसने परम सत्य का ही अनुभव किया है; सचमुच गोलोक का ही अवतरण हुआ है। किसी अचिन्ज्य शक्ति ने दूत में समयोपयोगी शक्ति का संचार किया। वह नन्द द्वार पर जा पहुँचा। फिर द्वारपाल को साथ लेकर वहाँ चला गया, जहाँ व्रजेन्द्र अर्द्ध निमीलित नेत्रों से अपने इष्ट देव की उपासना कर रहे हैं, श्री मन्नारायण का ध्यान कर रहे हैं। दिन भर बन्धु-बान्धवों का स्वागत-सत्कार करके, उनके आनन्द नृत्य में सहयोग दे कर, अपरिमित रत्न राशि, अन्न राशि लुटा कर, असंख्यात गोदान करके अब डेढ़ पहर रात बीतने पर वे एकान्त उपासना के लिये अवकाश पा सके हैं। पर आज का ध्यान उनके लिये एक पहेली-सी बन गया है। व्रजेश अपनी सम्पूर्ण वृत्तियाँ एकत्र करके चाहते हैं - श्री मन्नारायण के मकर कुण्डल-ज्योति से उद्भासित अमल कपोलों का, सुघड़ नासापुरों का सुन्दर नेत्रों का, घनकृष्ण कुञ्चित केश राशि का ध्यान करें; पर यह ध्यान न हो कर ध्यान होता है साढ़े छः पहर पूर्व भूमिष्ठ हुए अपने शिशु का। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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