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- कान्ह कुँवर की दृष्टि बचाइ।
- असुर अवधि तैं आगे जाइ।।
- अपने रूपहि आश्रित भयौ।
- तब ही अंबर लौं चढ़ि गयो।।
- ता छिन भयौ भयानक भारौ।
- पहिरें कंचन भूषन कारौ।।
- ता पर संकर्षन अति सोहे।
- ब्रज बालक विलोकि सब मोहे।।
- जो होइ कारी भारी घटा।
- बिच-बिच चमकै दमकै छटा।।
- ऊपर सरद-चंद होई जैसें।
- सोहैं रोहिनि-नंदन तैसैं।।
- बिकट बदन अरु बड्डे दंत।
- बिकट भृकुटि, दृग अग्नि बमंत।।
- तपत ताम्र-से सिररुह लसे।
- दिखि तब हलधर रंचक त्रसे।।
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