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- मंद-मंद गति गाइन पाछे।
- चलत ललन छबि पावत आछे।।
- गोरज-छुरित कुटिल कच बने।
- जनु मधुकर पराग-रस सने।।
- मंजुल मोरमुकुट की लटकनि।
- कंचन कुंडल गंडनि झलकनि।।
- उर बनमाल, सुनैन विसाल।
- बाजत मोहन बेनु रसाल।।
- सुनि कै गोपबधू सब निकसीं।
- मुद्रित कमलकलीं जनु विकसीं।।
- हरि-मुख-कमल भरयौ रस-रंग।
- गोपी-लोचन लंपट भृंग।।
- पुनि-पुनि करि कै पान अघाने।
- दृगन के बासर बरह सिराने।।
- तब कछु नैनन पूजा कीनी।
- लज्जासहित हँसनि रँग भीनी।।
- ता पाछे बर कुटिल कटाछे।
- चली जु प्रेम रँगीलौ आछे।।
- यह तिन की पूजा अभिराम।
- लै आए घर मोहन स्याम।।
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