श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
72. यमुना तट पर श्रीकृष्ण को बीच में रखकर सोते हुए समस्त व्रजवासियों एवं गायों को घेरकर दावाग्नि के रूप में कंस के भेजे हुए दावानल नामक राक्षस की माया का आधी रात के समय प्रकट होना और सबका भगवान नारायण की भावना से श्रीकृष्ण-बलराम को रक्षा के लिये पुकारना तथा उनका जगते ही फूँकमात्र से दावाग्नि को बात की बात में बुझा देना
अब नींद खुली व्रजेन्द्र नन्दन की और वे तत्क्षण उठ बैठे। उस समय आलस्य भरे श्रीअंगों की शोभा देखते ही बनती है-
अस्तु, नीलसुन्दर ने अपनी जननी की ओर देखा; उनकी सजल आँखें अपने लाल के सलोने दृगों में प्रतिबिम्बित हो गयीं, जननी की अन्तर्व्यथा का असह्य भार भी पुत्र के अन्तस्तल पर ज्यों का त्यों सरक आया। फिर क्या था, श्रीकृष्णचन्द्र के नयन-सरोजों में एक कम्पन हुआ, होठ भी किंचित हिल से गये और जैसे फूँक लगने से एक तुच्छ दीप बुझ जाय, इस प्रकार उनके अधरों से निस्सृत मन्द सुरभित फूत्कार के द्वारा ही वह महाप्रचण्ड दावाग्नि तत्क्षण शान्त हो गयी-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीगोपालचम्पूः)
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