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‘हे कृष्ण! हे महाभाग श्रीकृष्ण! हे अमित बलशाली बलदेव! तुम्हारे आत्मीय जन हम सबों को यह महा घोर दावाग्नि निश्चित रूप से ग्रास बनाने जा रही है! हे सर्वसामर्थ्यशालिन! इस सुदुस्तर कालाग्नि से हम सब अपने आत्मीय जनों को, सुहृद समुदाय की रक्षा करो। सर्वथा भय रहित तुम्हारे श्रीचरणों को क्षण भर के लिये भी छोड़ने में हम सभी असमर्थ हैं, देव!’
- माया मानुष रूप, भए तासु की सरन सब।
- बोले बचन अनूप, कृष्न कृष्न करुनानिधे।।
- हे बलदेव नाथ बल-रासी।
- घोर कृसानु लागि चहुँ पासी।।
- हम तव किंकर, ग्रसै कृसानू।
- पाहि पाहि हे श्रीभगवानू।।
- पावक काल रूप अति घोरा।
- राखि ताहि तैं तू प्रभु मोरा।।
- तव चरनारबिंद छन एकू।
- तजि न सकैं, यह अहै बिबेकू।।
- तब पद अभय सदा, जदुनंदा।
- तासु बियोग छनक दुख-दंदा।।
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