श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
72. यमुना तट पर श्रीकृष्ण को बीच में रखकर सोते हुए समस्त व्रजवासियों एवं गायों को घेरकर दावाग्नि के रूप में कंस के भेजे हुए दावानल नामक राक्षस की माया का आधी रात के समय प्रकट होना और सबका भगवान नारायण की भावना से श्रीकृष्ण-बलराम को रक्षा के लिये पुकारना तथा उनका जगते ही फूँकमात्र से दावाग्नि को बात की बात में बुझा देना
इधर तपन-तनया श्री यमुना के शान्त तट पर व्रजेश्वर, व्रजरानी, रोहिणी, व्रजराज की समस्त प्रजा एवं उनके प्राण-सर्वस्व राम-श्याम तन्द्रित हो चुके हैं। ह्नद से कुछ दूर हट कर अतिशय मनोहर मण्डलों की रचना कर दी गयी है। श्रीकृष्णचन्द्र को मध्य में विराजित करके उनके चारों ओर, उन्हें वेष्टित करते हुए व्रजराज आदि अवस्थित हैं। कहीं तो सखाओं का दल है, कहीं व्रजेश्वरी आदि विराजित हैं, कहीं अपनी माताओं के निकट कुमारिकाएँ हैं और कहीं सास के समीप गोपवधुएँ। यह प्रथम मण्डल है-
इस मण्डल से बाहर चारों ओर गोप सुन्दरियों के पति युवक गोप समूहों को स्थान मिला है। यह दूसरा मण्डल हुआ। तथा इनके चारों ओर तृतीय मण्डल में धनुर्धर गोपों की टोलियाँ विश्राम कर रही हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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