विषय सूची
श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
69. नाग पत्नियों का भी अपने शिशुओं को लेकर श्रीकृष्ण की शरण में उपस्थित होना, स्तुति एवं प्रणाम करना और पति के जीवन की भिक्षा माँगना; श्रीकृष्ण का करुणापूर्वक कालिय के फनों से नीचे उतर आना
‘तुम कालस्वरूप हो, काल शक्ति के आश्रय हो, काल के अवयव निमेष आदि के साक्षी हो, विश्वरूप हो, विश्वान्तर्यामी हो, विश्वकर्ता एवं विश्व काराण हो, तुम्हें हमारा वन्दन है! ‘विभो! पञ्चभूत, पञ्चन्मात्र, दशेन्द्रिय, पञ्चप्राण, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार- इन सबके रूप में तुम्हीं विराजित हो। त्रिगुण से होने वाले देहादि में अभिमान के द्वारा तुमने आत्मतत्त्व ज्ञान को आवृत कर रखा है! तुम्हारे श्रीचरणों में नमन है। ‘तुम अनन्त हो, अज्ञेय हो, उपाधिकृत-विकार रहित हो, सर्वज्ञ हो, विभिन्न मतवादियों की भावना के अनुरूप ही रूप धारण करते हो। तुम्हीं शब्दों के अर्थ के रूप में हो एवं शब्द भी तुम्हीं हो; इन दोनों को संधित करने वाली शक्ति भी तुम्हीं हो। तुम्हें नमस्कार है! ‘तुम समस्त प्रमाणों के मूल स्वरूप हो, स्वतः सिद्ध-ज्ञानवान हो, शास्त्रों के उद्भव स्थान हो, तुम्हीं प्रवृत्ति शास्त्र हो, तुम्हीं निवृत्ति शास्त्र हो, इन दोनों के मूल स्वरूप निगम वेद भी तुम्हीं हो। तुम्हें नमस्कार, नमस्कार है, प्रभो! |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |