विषय सूची
श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
9. शिशु श्रीकृष्ण का अन्नप्राशन-महोत्सव, कुबेर के द्वारा गोकुल में स्वर्ण वृष्ठि
जिस आँगन में श्रीकृष्ण चन्द्र अन्नप्राशन करेंगे, उसे भी व्रजेन्द्र ने स्वयं उपस्थित रहकर सजाया है। सुभार्जित, चन्दनवारि से सर्वत्र सिक्त विशाल सुन्दर प्रांगण में चारों ओर से ऊँचे-ऊँचे सघन कदली स्तम्भ खड़े कर दिये गये हैं। कदलीस्तम्भों पर यथास्थान सूक्ष्म वस्त्रों में ग्रथित आम्र नवपल्लव टँगे हैं। स्थान-स्थान पर फल-पल्लव समन्वित, चन्दन-अगुरु-कस्तूरी-पुष्प परिशोभित अनेक मंगल कलश रखे हैं। कलश के समीप पुप्प समूहों के, चित्र-विचित्र वस्त्रों के ढेर लगे हैं। ब्राह्मणों के विराजने के लिये यथा स्थान आसन एवं उनकी पूजा के लिये मधुपर्क पूरित अनेक पात्र रखे हैं। शत-शत स्वर्ण सिंहासन दान के लिये सजा-सजा कर रखे हुए हैं। यह सारी व्यवस्था व्रजेन्द्र ने केवल तीन पहर में की है। असंख्या गोप सेवकों को ले कर आधी रात के समय व्रजेश्वर ने कार्य आरम्भ किया था। पहर दिन चढ़ते-चढ़ते सारी व्यवस्था पूर्ण हो गयी है। अब इधर रेवती नक्षत्र भी प्रारम्भ हो चुका है। शुभ योग भी आ गया है। आज चन्द्र तो मीन लग्न में अवस्थित हैं ही। ब्राह्मण भी कदलीमण्डप में पधार गये हैं। अतः अविलम्ब क्रिया आरम्भ हो जाती है। शास्त्रविधि का अनुसरण करते हुए व्रजेन्द्र, व्रजरानी दोनों ही पुनः मंगल स्नान करते हैं। स्वयं निवृत्त हो कर फिर व्रजेश्वरी श्रीकृष्ण चन्द्र को स्नान कराती हैं। पश्चात पूर्वाभिसुख हो कर आसन पर नन्द दम्पत्ति विराजते हैं। उस समय व्रजरानी की गोद में श्रीकृष्ण चन्द्र को देख कर व्रजेन्द्र कुछ क्षण के लिये तो सब कुछ भूल जाते हैं। याजक भूदेवों की भी यही दशा होती है। मंगल गान करती हुई व्रजांगनाएँ भी श्रीकृष्ण चन्द्र की वह दिव्य छवि देखकर विमुग्ध हो जाती हैं। ब्राह्मण कुछ देर बार प्रकृतिस्थ हो कर आचमन, स्वस्ति वाचन, दीप प्रज्वालन, अध्र्यस्थापन आदि सम्पन्न कराते हैं; पर उनकी मुद्रा ऐसी हो गयी है मानो किसी गाढ़ समाधि से अभी-अभी उठे हों। व्रजेन्द्र भी नान्दी श्राद्ध आदि सभी कर्मों का समाधान करते जा रहे हैं - किंतु इस तरह, जैसे उनके हाथों में कोई अचिन्त्य शक्ति क्रिया करवा दे रही हो, स्वयं वे इस शरीर से कहीं अलग चले गये हों। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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