नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह चक्र पृ. 545

नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'

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91. राजर्षि परीक्षित-उपसंहार


भगवत्कथा संसार को सुलभ हो जाय, इससे उत्तम कुछ नहीं हो सकता था। मैंने आज्ञा स्वीकार कर ली और अपने सिंह-ध्वज रथ पर बैठकर दिग्विजय करने निकल पड़ा। उद्धवजी का अनुमान सत्य निकला। गोरुपधारिणी देवी धरित्री और वृषरूपधारी धर्म मेरे सम्मुख प्रकट हुए। शूद्र कलि उन्हें पीड़ित करता दीखा मुझे। वह तो केवल डाँटने से मेरे पैरों पर गिर पड़ा। उसकी याचना पर मैंने उसे अनाचार, सुरापान, द्यूत और हिंसा जहाँ हो, वहाँ रहने का आदेश दे दिया। उसकी प्रार्थना ठीक थी कि सम्पूर्ण राज्य में ये चारों अपकर्म कहीं नहीं होते थे। मैं पृथ्वी का सम्राट- अतः कलि कहाँ रहता? परमात्मा ने उसका समय पृथ्वी पर निर्धारित किया है तो मुझे उसे स्थान तो देना ही चाहिये। मैंने उसे अन्त में पाँचवा स्थान स्वर्ण-धन की लोलुपता दे दी।

कलि-निग्रह करके मैं लौटा और माथुर-मण्डल आया तो बहुत निराश हुआ। श्रीकृष्णचन्द्र की रानियों का और वज्रनाभ का कोई पता नहीं था। वज्रनाभ के पुत्र तथा सेवक भी नहीं जानते थे कि गोवर्धन के समीप से उनका क्या हुआ। अन्ततः मैं महर्षि शाण्डिल्य के आश्रम पहुँचा। अच्छा हुआ कि मैं उस दिन आ गया था। महर्षि अपने हिमालय के आश्रम में अदृश्य रहकर तप करने का निश्चय कर चुके थे और प्रस्थान करने ही वाले थे।

'वत्स! तुम्हारा यह देश और काल तो केवल सृष्टिकर्त्ता के मन की कल्पना है। ब्रह्माजी के मन में ही यह सब है। उनका स्वप्न कह सकते हो इसे।' महर्षि ने मुझे समझाया- 'अवतार-काल में भगवदिच्छा से उनकी लीला और लीला-परिकर इस जगत में व्यक्त हो जाते हैं। अब अवतारकाल समाप्त हो गया तो लीला तिरोहित हो गयी। उद्धवजी की कथा के अन्त में स्वयं श्रीकृष्णचन्द्र ने अपने नित्यधाम तथा परिकारों को वहाँ प्रकट कर दिया। वज्रनाभ तथा रानियों ने उस धाम में अपना शाश्वत स्थान साक्षात किया और उससे एक हो गये। व्रजराजकुमार के दक्षिण चरण में जो वज्र का चिह्न है, उसी की चिन्मय रश्मि वज्रनाभ के रूप में व्यक्त थी। रानियाँ भी श्रीराधा की अंग-रश्मियाँ थीं। ये सब अपने नित्य स्वरूप में स्थित हो गये। अतः अब इस दृश्य जगत में उनका तिरोभाव हो गया। वैसे श्रीनन्दनन्दन, उनका धाम, उनकी लीला, उनके लीला-परिकर नित्य हैं। लेकिन अब अवतार-काल नहीं है। अब तो केवल प्रेम-परिपाक से ही भावुक भक्त उनका प्रत्यक्ष साक्षात्कार कर सकते हैं। सामान्य जनों के लिए अब वह लीला अदृश्य है। उसकी भावना करने से ही मनुष्य का पाप-ताप नष्ट होता है और उसका अन्तःकरण परिशुद्ध हो जाता है।'

महर्षि ने भी मुझे आश्वासन दिया है कि भगवान शुकदेवजी मुझ पर कृपा करेंगे। मैं उनके श्रीमुख से श्रीमद्भागवत का श्रवण करके श्रीकृष्णचन्द्र के श्रीचरणों का शाश्वत सान्निध्य प्राप्त कर सकूँगा।

महर्षि अब अपने हिमालय के आश्रम चले गये। वहाँ भी अदृश्य रहते हैं। परमहंस महामुनियों के शिरोमणि शुकदेवजी को कोई ढूँढ़कर तो पा नहीं सकता। वे उन्मत्त-अवधूत वेश में दिगम्बर घूमते रहते हैं। कहीं किसी के द्वार पर पहुँचे भी तो गोदोहन हो, इतने समय-मात्र भिक्षा के लिए रुकते हैं। वे तो स्वयं कृपा करके पधारें तभी उनके दर्शन सम्भव हैं।

उद्धवजी और महर्षि शाण्डिल्य का आश्वासन है। श्रीकृष्णचन्द्र की अहैतु की कृपा का अवलम्ब है। मैं उनका- उन्हीं का हूँ। अतः वे अवश्य कृपा करेंगे और शुकदेवजी मुझे दर्शन देंगे, यही प्रतीक्षा कर रहा हूँ।

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संबंधित लेख

नन्दनन्दन
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. मंगलाचरण
2. अपनी बात 1
3. प्रस्तावना 4
4. महर्षि शाण्डिल्‍य-कुल परिचय 13
5. भगवती पूर्णमासी-मधुमंगल 24
6. माता रोहिणी-दाऊ का जन्‍म 31
7. चंद्रदेव-बाबा-मैया का परिचय 40
8. भगवान भास्‍कर-श्रीराधा-जन्‍म 44
9. मैया यशोदा-सीमन्‍तन 47
10. नन्‍द बाबा-श्रीकृष्‍ण-जन्‍म 53
11. धात्री मुखरा-जन्‍मोत्‍सव 58
12. बुआ नन्दिनी-षष्‍ठी महोत्‍सव 63
13. सनकादि कुमार-पूतना-मोक्ष 69
14. तुंगी तायी-दुग्‍ध–पान 80
15. शुक्राचार्य–श्रीधर विप्र 86
16. महर्षि लोमश–शकट-भञ्‍जन 90
17. श्रीगर्गाचार्य–नामकरण 99
18. पीवरी तायी–भूम्‍युपवेश 106
19. नाना सुमुख–अन्नप्राशन 111
20. कुबला चाची–शैशव 118
21. काकभुशुण्डि–क्रीड़ा 125
22. महर्षि दुर्वासा–तृणावर्त त्राण 132
23. महर्षि मार्कण्‍डेय–वर्षगाँठ 137
24. अतुला चाची-चिर-चपल 141
25. बुआ सुनन्‍दा-मृद-भक्षण 155
26. फल-विक्रयिणी 161
27. वृषभानु बाबा-सगाई 167
28. विप्रर्षि कण्‍व 171
29. अभिनन्‍द ताऊ-सेवा-सम्‍मान 179
30. मल्लिका मौसी-सर्वप्रिय 183
31. अश्विनी कुमार-कर्ण-वेध 191
32. मधुमंगल-माखन चोरी 196
33. शारदा-उपालम्‍भ 204
34. उर्वशी-ऊखल-बन्‍धन 210
35. यमलार्जुन 220
36. चाचा सन्नन्द-दामोदर-मुक्ति 226
37. कुबेर-बाल-क्रीड़ा 231
38. दाऊ-वृक्रोपद्रव 235
39. उपनन्द ताऊ-गोकुल-त्‍याग का प्रस्‍ताव 238
40. नन्‍दन चाचा-वृन्‍दावन की ओर 243
41. विश्वकर्मा-नन्‍दगाँव 253
42. ऋषभ-नये सखा 257
43. कीर्त्ति मैया-प्रथम परिचय 261
44. माधुरी दासी-पनघट 267
45. लक्ष्‍मी-गोदोहन 274
46. साधु-सेवक-वत्‍स-चारण 280
47. तुम्बरू-वेणु-वादन 287
48. ब्रह्मर्षि वशिष्ठ-वत्सोद्धार 294
49. महर्षि जाजलि-बकोद्धार 299
50. विशाखा-परिचय 305
51. रंगदेवी-तुलसी-पूजन 309
52. देवी दुर्गा-व्‍योम-वध 315
53. यमराज-अघोद्धार 322
54. कालिन्‍दी-वन-भोजन 331
55. ब्रह्मा-विधि-व्‍यामोह 337
56. गणेश-गोचारण 348
57. सुबल-दधि-दान 357
58. विशाल-सखा समूह 364
59. गरुड़-कालिय-दमन 368
60. देवर्षि नारद-धेनुक-ध्वंस 379
61. देवगुरु बृहस्पति-प्रलम्ब-परित्राण 384
62. शनैश्चर-ढुण्ढा की होली 388
63. महर्षि अंगिरा-दावाग्नि-पान 393
64. बहिन अजया-गोवर्धन-पूजन 404
65. महर्षि पुलत्स्य-गोवर्धन-धारण 410
66. देवराज इन्द्र-गोविन्दाभिषेक 416
67. पाटली नानी-शंका-सगाई 421
68. जलाधिप वरुण-दिव्य-दर्शन 425
69. भगवती कात्यायनी-चीर-हरण 430
70. बुध-विप्र-पत्नियाँ 436
71. श्रीकृष्ण-श्रीराधा विवाह 443
72. कामदेव-रासका प्रारम्भ 447
73. चंद्रावली-रास में मान-भंग 454
74. भगवान शिव-महारास 462
75. दानवेन्द्र मय-अजगर उद्धार 466
76. राहु-शंखचूड़-वध 471
77. सुदेवी-प्रमुख सखियों का परिचय 475
78. मंगल-अरिष्ट- संहार 477
79. गायत्री-केशी-क्रंदन 481
80. ग्रामदेव-अक्रूर आये 486
81. अक्रूर-अदभुत दर्शन 492
82. विप्रपत्नी ऋतम्भरा-बाबा लौटे 495
83. ललिता-वियोग-दर्शन 499
84. भास्वरा भाभी-माँ रोहिणी मथुरा को 503
85. उद्धव 507
86. वृन्दादेवी-दाऊ आये 515
87. महाभानु बाबा-कुरुक्षेत्र से लौटे 519
88. मंगला दासी-द्वितीय ग्रहण-यात्रा 523
89. श्रीराधा 527
90. भद्रसेन 532
91. राजर्षि परीक्षित-उपसंहार 543
92. अंतिम पृष्ठ 546

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