नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
4. महर्षि शाण्डिल्य-कुल परिचय
तप्तताम्र वर्ण, प्रलम्बकाय, विशाल बाहु, अरुणाभ दीर्घ दृग, उन्नत नासिका-भाल, श्वेतकेश श्मश्रु होने पर भी स्वस्थ, सुगठितकाय महर्षि शाण्डिल्य ने स्वयं अपने संबंध में पूछने पर महाराज परीक्षित को सुनाया- 'भगवान सहस्त्रशीर्षा अनन्त के द्वारा उपदिष्ट सात्वत-संहित- पांचरात्रागमका मैं प्रचारक, प्रतिष्ठाता हूँ और चतुर्व्यूहात्मक परमपुरुष पुरुषोत्तम ही मेरे आराध्य हैं।' ऊर्ध्वपुण्ड्रांकित भाल, तुलसीकण्ठमाल, शुभ्र वसन उन वैष्णवों के परमाचार्य ने सुनाया- 'मुझे अपवित्रता की गन्ध से अरुचि है। मैंने अपनी तपोभूमि को क्रोसमात्र चतुर्दिक पवित्र रखने की नित्य व्यवस्था का विधान किया तो इन्द्र ने इसे अपनी सेवा मानकर सादर स्वीकार कर लिया। हिमगिरि का वह एकान्त निर्जन प्रदेश मुझे प्रिय है।[1] मुझे बहुत बुरा लगा जब सृष्टिकर्ता ने पौरोहित्य करने को मुझसे कहा। पौरोहित्य भी ब्राह्मणों में से किसी वेदज्ञ, तपस्वी का नहीं, किसी राजा का या सामान्य क्षत्रिय का भी नहीं, गोपों का। मैं कदाचित ही कभी क्रोध कर पाता हूँ। भक्ति-सूत्र के कर्त्ता को, पांचरात्र के प्रतिष्ठाता को प्राणिमात्र में अपने आराध्य के दर्शन न हों तो किसे होंगे; किन्तु उस दिन मैं अपने क्षोभ को रोक नहीं पा रहा था। सृष्टिकर्त्ता क्या समझते हैं कि उनको शाप देने वाला कोई समर्थ ही नहीं है? 'वत्स! अपनी उत्तेजना शान्त करके मेरी बात सुन लो!' भगवान ब्रह्मा सर्वज्ञ हैं। ऐसा न भी होता तो भी उनके लिए अनुमान करना कठिन नहीं था। आवश्यक उत्तेजना से मेरे दृग अरुण हो उठे होंगे और मुख पर आवेश स्पष्ट होगा। वैसे भी सुरों के उन पितामह को संकल्प की भाषा भली प्रकार अवगत है। उन्होंने अत्यन्त स्नेहपूर्वक मुझे समझाया- 'जिस लाभ के लोभ ने वसिष्ठ जैसे ब्रह्मर्षि को पौरोहित्य पद स्वीकार कराया था और वह पाने को मेरे दूसरे सब पुत्र उत्कण्ठित हो उठे थे, वही महत्तम अवसर पुन: आने वाला है। तुम एक बार ब्रज चले जाओ। मुझे आशा है कि वहाँ पहुँचकर तुम इस प्रस्ताव के लिए मेरा आभार मानोगे।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारत-तिब्बत सीमा के अल्मोड़ा जिले के अंतिम ग्राम मिलम से लगभग 15 मील दूर ऊँचाई पर है सूर्यकुण्ड। वहाँ से प्राय: तीन मील ऊपर शाण्डिल्य कुण्ड है। इसके चतुर्दिक दो मील के क्षेत्र में कोई पशु-पक्षी नहीं। इस हिम क्षेत्र में मल-मूत्र या कफ भी कोई (पशु भी) डाले तो ओले पड़ने लगते हैं, वर्षा होती है और जब तक वह गन्दगी धुल न जाय, होती रहती है।
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