नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
19. नाना सुमुख-अन्नप्राशन
क्या करूँ, नन्दराय मानते नहीं हैं, अन्यथा मैं तो चाहता हूँ कि यशोदा इस लाल को लेकर कुछ मास तो मेरे यहाँ रह आवे। यह नन्हा अभी से अपने अग्रज दाऊ को देखे बिना रोने लगता है; किंतु रोहिणी भी तो मेरी पुत्री ही हैं। वे अपने इस गोप पितृव्य के गृह को भी अपने पदों से पवित्र कर दें तो मैं धन्य हो जाऊँ। मेरी प्रार्थना सुनी नहीं जायगी- जानता हूँ। मेरा यह दौहित्र है ही ऐसा कि इसी में सबके प्राण बसते हैं। नन्दराय के सब भाई, गोकुल के सब गोप ही नहीं, उनके शिशु भी इसके बिना दो घड़ी रहना नहीं चाहते और मैं ही कैसे कह दूँ कि सब गोकुल को सुनसान बनाकर मेरे ग्राम को महामंगल प्रदान करें। मैं यहाँ रह नहीं सकता। पुत्री के ससुराल के ग्राम का पानी कैसे पी सकता हूँ। आता हूँ- इसे देखे बिना दो सप्ताह व्यतीत होते हैं तो लगता है कि दो कल्प व्यतीत हो गये; किंतु मैं यहाँ रात्रि तो व्यतीत नहीं कर सकता। महर्षि शाण्डिल्य ने मुहूर्त निश्चित किया है। माघ शुक्ल चतुर्दशी को गुरुवार, रेवती नक्षत्र में मीन का चन्द्र और लग्नेश पर उसकी पूर्ण दृष्टि है। वणिजकरण, शुभयोग में आज इसका अन्नप्राशन है। कहाँ सोच पाया- इसके माता के उदर में आने के दिन से सोचता रहा हूँ कि इसको इस अवसर पर क्या दिया जा सकता है; किंतु कोई वस्त्र, कोई रत्न, कोई वस्तु इसके उपयुक्त ही नहीं लगती। मुझे कितना सम्मान देते हैं नन्दराय! यह तो साधारण बात है कि इस अवसर पर मैं इनके सब भाइयों और उनकी पत्नियों के लिए वस्त्राभरण लाऊँगा। वे भी तो मेरी पुत्रियाँ ही हैं। इन सबके शिशु मेरे दौहित्र। परमात्मा ऐसी पुत्री प्रत्येक पिता को दें। महाराज उग्रसेन भी रोहिणी रानी को पुत्री कहकर पुलकित होते थे। वे पुरुवंश की मानिनी कन्या मुझे पितृव्य कहती हैं। मेरी लायी साड़ी ही आज मेरे सम्मान के लिए उन्होंने भी धारण की है और आभरण भी। मुझसे कह रही थीं- 'पितृव्य! आज आपके दोनों दौहित्रों का- अरे नहीं, सब-के-सब दौहित्रों का एक साथ अन्न-प्राशन है।' 'दोनों ही क्यों- गोकुल के सब शिशु मेरे दौहित्र हैं और आज उनमें से अधिकांश का अन्न-प्राशन संस्कार है। मेरे जैसा भाग्यशाली मातामह संसार ने और पाया है कभी? |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज