गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 78

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
दूसरा अध्याय
सांख्‍ययोग


य: सर्वत्रानभिस्‍नेहस्‍तत्तत्‍प्राप्‍य शुभाशुभम्।
नाभिनन्‍दति न द्वेष्टि तस्‍य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।57।।

सर्वत्र राग रहित होकर जो पुरुष शुभ या अशुभ की प्राप्ति में न हर्षित होता है, न शोक करता है, उसकी बुद्धि स्थिर है।

यदा संहरते चायं कूर्मोङ्गनीव सर्वश:।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्‍यस्‍तस्‍य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।58।।

कछुआ जैसे सब ओर से अंग समेट लेता है वैसे जब यह पुरुष इंद्रियों को उनके विषय में से समेट लेता है तब उसकी बुद्धि स्थिर हुई कही जाती है।

विषया विनिवर्तन्‍ते निराहारस्‍य देहिन:।
रसवर्ज रसोऽप्‍यस्‍य परं दृष्ट्वा निवर्तते।।59।।

देहधारी निराहारी रहता है तब उसके विषय मंद पड़ जाते हैं। परंतु रस नहीं जाता। वह रस तो ईश्वर का साक्षात्‍कार होने से निवृत्त होता है।

टिप्‍पणी- यह श्‍लोक उपवास आदि का निषेध नहीं करता, वरन उसकी सीमा सूचित करता है। विषयों को शांत करने के लिए उपवास आदि आवश्‍यक हैं, परंतु उनकी जड़ अर्थात उनमें रहने वाला रस तो ईश्वर की झांकी होने पर ही निवृत्त होता है। ईश्वर-साक्षात्‍कार का जिसे रस लग जाता है वह दूसरे रसों को भूल ही जाता है।

यततो ह्यपि कौन्‍तेय पुरुषास्‍य विपश्चित:।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मन:।।60।।

हे कौंतेय ! चतुर पुरुष के उद्योग करते रहने पर भी इंद्रियां ऐसी प्रमथनशील हैं कि उसके मन को भी बलात्‍कार से हर लेती हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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