गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
सातवां अध्याय
ज्ञानविज्ञान योग
पुण्यो गन्ध: पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ। पृथ्वी में सुगंध मैं हूं, अग्नि में तेज मैं हूं, प्राणीमात्र का जीवन मैं हूं, तपस्वी का तप मैं हूँ। बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्। हे पार्थ! समस्त जीवों का सनातन बीज मुझे जान। बुद्धिमान की बुद्धि मैं हूं, तेजस्वी का तेज मै हूँ। बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम्। बलवान काम और रागरहित बल मैं हूँ और हे भरतर्षम ! प्राणियों में धर्म का अविरोधी काम मैं हूँ। ये चैव सत्त्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये। जो-जो सात्त्विक, राजसी और तामसी भाव हैं, उन्हें मुझसे उत्पन्न हुआ जान। परंतु मैं उनमें हूं, ऐसा नहीं है; वे मुझमें हैं। टिप्पणी- इन भावों पर परमात्मा निर्भर नहीं है, बल्कि वे भाव उस पर निर्भर हैं। उसके आधार पर हैं, रहते हैं और उसके वश में है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज