कविता भाटिया (वार्ता | योगदान) |
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01:18, 24 मार्च 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
60. श्रीकृष्ण के द्वारा बलराम जी के प्रति वृन्दावन की शोभा का वर्णन
अहा! उधर देखो, वह है तपन तनया का मञ्जुल प्रवाह। बह रहा मानस-गंगा का शान्त स्रोत। सामने अवस्थित हैं गिरिराज गोवर्धन और अन्य पर्वत मालाएँ। ये रहे ऊपर, सामने, पीछे, दक्षिण वाम पाश्व में उड़ते, बैठे, कलरव करते हुए विहंगम-कुल तथा सर्वत्र कानन में स्वच्छन्द विचरण करते हुए पशु समूह। ओह! इन सरिता, सर, गिरि, खग-मृग- सब पर ही तो तुम्हारी प्रतिदिन सकरुण दृष्टि पड़ती है। कितने सौभाग्यशाली हैं ये! अहो! भाग्य देखो इस श्याम वर्णा गोपी नाम की लता का! कहाँ तो तुम्हारा यह सुविस्तीर्ण वक्षःस्थल वैकुण्ठ वासिनी लक्ष्मी के लिये भी स्पृहणीय है तथा उसी पर पुष्पमाल्य के साथ ग्रथित होकर ये लताएँ भी झूल रहीं हैं! दादा! स्वयं देख लो! तुम्हारे इस अप्रतिम कृपा-प्रसाद का दान पाकर ये सब आज कितने धन्य-धन्य हो रहे हैं।’
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (श्रीमद्भा. 10। 15। 8)
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