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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
55. ब्रह्मा जी द्वारा की गयी स्तुति एवं प्रार्थना
दूर से ही मैंने प्रभु की वन्दना की थी-
‘प्रभो! आप अनन्त हैं, आपको नमस्कार कर रहा हूँ। आपकी शक्ति का पार नहीं। आपके पराक्रम विचित्र हैं, कर्म पवित्र हैं। आप गुणों के द्वारा ही अपनी लीला से विश्व का सृजन, पालन, प्रलय करते हैं, फिर भी निर्विकार हैं! आपको नमस्कार है, प्रभो!’ बस, प्रणाममात्र निवेदन कर लौट आया था। इसके पश्चात वामनरूप से प्रभु ने अवसर दिया था चरणस्पर्श का। बलि के द्वारा संकल्प की हुई तीन पग भूमि को ग्रहण करने के लिये प्रभु ने चरण-विस्तार किये। वामन देव का वह पदविन्यास ऊपर की ओर उठता हुआ महलोक, जनलोक, तपोलोक अतिक्रमण कर मेरे आवास सत्यलोक में आया। उनके उस चरण नखचन्द्र की छटा से सत्यलोक की आभा प्रतिहत हो गयी। मैं स्वयं उस प्रकाश में निमग्न हो गया। दौड़ा मैं अभिनन्दन करने। और मैंने फिर उस चरण-अंगुष्ठ का प्रक्षालन किया- |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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