श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
1. जन्म-महोत्सव
उपनन्दजी नन्द के आने से पूर्व ही आ गये। वे समयोचित व्यवस्था में लगे हैं। ब्राह्मणों को बुलाने के लिये दूत भेज चुके हैं। अब तोरण द्वार के पास नगारे वालों को समस्त व्रज में घोषणा करने की बात समझा रहे हैं। गद्गद कण्ठ से कह रहे हैं-
सहनाई वाले सदलबल आ पहुँचे हैं। नगारे वालों ने पहला डंका लगाया। दूसरे ही क्षण सहनाई वालों ने भी मधुराति मधुर रागिनी की तान छेड़ दी। नन्दप्रासाद की मणिमय भित्ति, आच्छादन (छत) और स्तम्भों को निनादित करती हुई वह सुरीली ध्वनि समस्त व्रजपुर में फैलने लगी। इससे पहले भी व्रज में अनेकों बार सहनाई बजी थी, पर आज की तान तो आज ही बजी है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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