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कहीं किसी दूसरी गोपी के मानसतल में नन्दनन्दन के जन्महोत्सव का राग-रंग भर रहा है, उत्सव का साक्षात्कार कर वह फूली नहीं समा रही है, उसके प्राणों की उमंग शब्दों का आकार धारण कर बाहर प्रसरित होने लगती है-
- माई! आज गोकुल गाम कैसौ रह्यौ फूलि कै।
- गृह फेलें दीसें, जैसैं संपति समूल कै।।
- फूली-फूली घटा आई, घरहर घूमि कै।
- फूली-फूली बरषा होति, झर लायौ झूमि कै।।
- फूलौ-फूलौ पुत्र देखि, लियौ उर लूमि कै।
- फूली हैं जसोदा माइ, ढोटा-मुख चूमि कै।।
- देवता-आगिनि फूले, घृत-खाँड़ होमि कै।
- फूल्यौ दीसै दधिकाँदौ, ऊपर सो भूमि कै।।
- मालिन बाँधै बँदनमाल, घर घर डोलि कै।
- पाटंबर पहिराइ राइ, अधिकै अमोल कै।।
- फूले हैं भँडार सब, द्वारे दिये खोलि कै।
- नंद दान देत फूले, ‘नंददास’ बोलि कै।।
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