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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
41. दैनिक वत्सचारण-लीला का वर्णन
आज से नहीं, प्रसूति गृह में थीं तब से व्रजरानी देख रही हैं- गोपसुन्दरियों के प्राण उनके नीलमणि में ही समाये रहते हैं और वे घूम-फिरकर नन्दभवन की ही परिक्रमा करती रहती हैं। नीलमणि जब पालने झूलने लगे, गोपसुन्दरियों के ताल बन्ध पर नृत्य करने लगे, उस समय गोपसुन्दरियाँ आतीं एवं व्रजेश्वरी के चरणों में अपने आकुल प्राणों की अभिलाषा निवेदन करतीं-
यह सुनकर व्रजरानी के नेत्र छलग उठते, ‘बहिनो! नीलमणि तो तुम सबों का ही है’ कहकर उनकी गोद में वे नीलमणि को रख देतीं और उनका मनोरथ पूर्ण होता। मैया यहाँ की रीति से परिचित हैं, उन्होंने देख लिया है, जो एक बार नन्दभवन में आया है, उसने अपने मन, प्राण, सब कुछ नीलमणि को समर्पित कर दिये हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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