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श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
34. उपनन्द जी के प्रस्ताव पर, आये दिन व्रज में होन वाले उपद्रवों के भय से सम्पूर्ण व्रजवासियों की गोकुल छोड़कर यमुना जी के उस पार वृन्दावन जाने की तैयारी
क्षण भी न लगा, बृहद्वन से वृन्दावन जाने की योजना लीलाशक्ति ने व्रजेश्वर के राज्यमन्त्री, ज्येष्ठ भ्राता उपनन्द के अन्तस्तल में स्फुरित कर दी। आज गोपेश्वर ने राज्यमन्त्रणा के लिये व्रजपुर के सभी प्रमुख वृद्ध वयस्क गोपों को निमन्त्रित किया है। उसी में योगदान करने श्रीउपनन्द जा रहे हैं-उसी पथ से, जिसमें वह तुलसीकानन है और श्रीकृष्णचन्द्र अपनी जननी के पास खड़े प्रदीप पंक्ति की शोभा निहार रहे हैं। दृष्टि पड़ते ही उपनन्द के मनोराज्य में स्पन्द आरम्भ होता है और वे मन ही मन तुरंत एक नया प्रस्ताव स्थिर कर लेते हैं। आज ही नहीं, जिस दिन पूतना आयी थी, उसी दिन उन्होंने निश्चय कर लिया था कि अब बृहद्वन का परित्याग करना ही होगा। तब से वे प्रायः प्रतिदिन ही सुदूर वनप्रान्तर में भ्रमण करते। भ्रमण का एक ही उद्देश्य होता सम्पूर्ण नन्दव्रज बृहद्वन से उठकर कहीं अन्यत्र बस जाता, इसके उपयुक्त स्थान ढूँढ़ना। कल उनका अन्वेषण पूर्ण हो चुका था। वृन्दावन का, गिरिराज के विशाल भूभाग का, उसके कोने-कोने का पर्यवेक्षण करके वे इस निश्चय पर पहुँच गये थे कि सभी दृष्टियों से परम सुखमय स्थान वही है तथा अधिक दूर भी नहीं है। अवश्य ही अब से चार प्रहर पूर्व उनका निश्चय यह था कि किसी अन्य अवसर पर कुछ विलम्ब करके ही वे इसकी सूचना सबको देंगे, ग्रीष्म आने तक वे इस योजना को कार्यान्वित न करेंगे; किंतु पथ में वहाँ नन्दनन्दन को देखते ही सहसा उनके विचार बदल जाते हैं तथा आज की सभा का मुख्य उद्देश्य उनके लिये तो, बस, वृन्दावन गमन ही हो जाता है। इस उद्देश्य को लिये ही वे सभामंच पर आ विराजते हैं। बृहद्वन परित्याग करने की प्रेरणा तो अभिनन्द, सन्नन्द आदि व्रजेश के सहोदर भ्राताओं को भी मिल चुकी थी। अवश्य ही वे लोग स्थान का निर्णय नहीं कर पा रहे थे कि ऐसा सुखद स्थान कौन-सा हो, जहाँ व्रज बस सके। इसलिये वे सर्वथा मौन थे। पर आज वे लोग भी उसी पथ से आये। यशोदानन्दन को उन सबने भी देखा। उन सबके मन में भी आज अपने विचार प्रकट कर देने की प्रबल प्रेरणा हुई। वे यह तो जान नहीं जाये कि यशोदा का वह मरकत श्याम शिशु ही उनके अन्तस्तल में अन्तर्यामी बनकर अनादिकाल से उनका नियन्त्रण कर रहा है, यह प्रेरणा भी उसकी ही है। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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