श्रीकृष्ण लीला का चिन्तन
62. वन में गौओं का भटक कर कालिय-ह्नद (कालीदह) के समीप पहुँचना और प्यासी होने के कारण वहाँ का विषैला जल पीकर प्राण शून्य हो गिर पड़ना, गोप-बालकों का भी उसी प्रकार निश्चेष्ट होकर गिर पड़ना; श्रीकृष्ण का वहाँ आकर उन सबको तथा गौओं को करुणा पूर्ण दृष्टि मात्र से पुनर्जीवित कर देना और सबसे गले लगकर एक साथ मिलना
फिर तो कन्हैया भैया की जय होनी ही है-
नीलसुन्दर के अधरों पर मन्द मुस्कान है; किंतु उनकी दृष्टि केन्द्रित है कालियह्नद की ओर। वे सोच रहे हैं कुछ और ही; कालियह्नद में विहार करने का मनोरथ निर्मित हो रहा है तथा शिशु व्यस्त हैं अपने कोटि-प्राणप्रतिम कन्नू भैया के प्रति अपने स्नेह पूरित अन्तस्तल का आभार व्यक्त करने में-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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