पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
9. प्रथम-मिलन
अर्जुन ने सहज ही धनुष उठा लिया, चढ़ाया और पहिले बाण में ही लक्ष्य वेध कर दिया। धनुष के पास पहुँचकर उन्होंने उसकी प्रदक्षिणा की थी, भगवान शंकर और श्रीकृष्ण को सिर झुकाया था, तब तो नरेश उन पर हंस रहे थे; किन्तु उन्होंने लक्ष्य-वेध कर दिया तो सब उत्तेजित हो उठे। ब्राह्मण प्रसन्न होकर अपने दुपट्टे फहराने लगे थे। अर्जुन के ऊपर पुष्प वर्षा होने लगी। दूसरे सब राजा युद्ध में शीघ्र पराजित हो गये। भीमसेन को शल्य ने रोका था, पर शीघ्र भीम ने उसे धर पटका। अर्जुन के बाणों से कर्ण व्याकुल हो गया। उसने उन्हें ब्राह्मण समझकर रण-कौशल की प्रशंसा की तो अर्जुन ने कह दिया- ‘आप धैर्य पूर्वक युद्ध करें ! गुरु कृपा से मुझे इन्द्रास्त्र और ब्रह्मास्त्र भी प्राप्त है।‘ श्रीकृष्ण नम्रता पूर्वक समझा रहे थे। राजाओं का समूह पहिले ही हतोत्साह हो चुका था। सब जानते थे कि ये ब्रह्मण्यदेव चाहे जब चक्र उठाकर ब्राह्मण पक्ष में खड़े हो सकते हैं और छोटे भाई युद्ध में उतरे तो बड़े को हल-मुसल सम्हालते देर नहीं लगेगी। राजाओं ने श्रीकृष्ण की बात स्वीकार कर ली और अपने निवास स्थानों पर लौट गये। अर्जुन और भीमसेन ब्राह्मणों से घिरे राजकन्या को लेकर अपने ठहरने के स्थान पर घर गये। ब्राह्मण विदा ही हुए थे कि अग्रज के साथ जनार्दन आ पहुँचे और देवी कुन्ती तथा युधिष्ठिर के चरण स्पर्श करके अपना नाम बतलाया। पाण्डवों ने प्रेम से उनका स्वागत किया। युधिष्ठिर ने पूछा- ‘भगवन् ! हम तो यहाँ छिपकर रह रहे हैं, आपने हमें कैसे पहिचान लिया?’ श्रीकृष्ण-बलराम का यह पाण्डवों से प्रथम-मिलन था और पाण्डव इस समय साधारण ब्राह्मण वेश में थे, अत: धर्मराज का प्रश्न उचित था। श्रीकृष्णचन्द्र ने हंसकर कह दिया- ‘अग्नि भस्म में छिपा हो तो भी उसे ढूंढना कठिन नहीं होता। |
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