पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
15. हस्तिनापुर-कर्षण
कौरवराज दुर्योधन ने अपनी कन्या के स्वयंवर की घोषणा की थी। दुर्योधन ने यादवों को इस योग्य ही नहीं माना कि वहाँ समाचार दिया जाय; किन्तु स्वयंवर सभा में श्रीकृष्ण के पुत्र जाम्बवती नन्दन साम्ब पहुँच गये। जिनका सौन्दर्य साक्षात् काम प्रद्युम्न से भी अधिक माना जाता है, वे प्रतीक्षा करते तो राजकन्या उनके अतिरिक्त दूसरे किसी के गले में वरमाला डालने वाली थी नहीं। दुर्योधन ने इसे लक्षित किया। उसने कन्या को दूसरी ओर जाने का संकेत किया। यह बात साम्ब को सहन नहीं हुई। अपने आसन से उठे। कन्या को उन्होंने बलात् उठाया और ले जाकर रथ में डाल दिया। धनुष चढ़ा लिया। सबसे अधिक उत्तेजना कौरवों में ही आयी; क्योंकि जो दूसरे आमन्त्रित आये थे, सब जहाँ-के-तहाँ सन्न खड़े रह गये। सबको पता था, साम्ब के विरोध का अर्थ है साक्षात् गरुड़ासन चक्रधर श्रीकृष्ण का विरोध। इतना साहस भारत में किसी में भी नहीं था। लेकिन दुर्योधन उत्तेजित हो गया- ‘पकड़ लो इस लड़के को। इसने बिना इच्छिता कन्या का अपहरण किया है। कुरुकुल का अपमान है।’ दुर्योधन ने थोड़ी कूटनीति चली। उसने घोषणा की– ‘भीष्म और अर्जुन के रहते हुए उनके बिना दिये कोई लोकपाल भी कुरुकुल की कन्या कैसे पा सकता है?’ आश्चर्य की बात है, भीष्म मुस्कराये और दुर्योधन को ललकार दिया- ‘ठीक है, लड़के को रोक दो।’ लेकिन स्वयं भीष्म, कृपाचार्य या द्रोणाचार्य किसी ने धनुष नहीं उठाया। स्वयंवर में आये हुए किसी राजकुमार या उसकी सेना ने आगे बढ़ने का साहस नहीं किया। केवल दुर्योधन, कर्ण, शकुनी, अश्वत्थामा, दु:शासन और शकुनी के पुत्र उलूक- इन छ: ने साम्ब पर आक्रमण किया। ये छहों मारे गये होते, लेकिन इन लोगों ने काम बांट लिया। चार ने साम्ब के रथ के चारों घोड़े मार दिये। एक ने सारथी को मार दिया और कर्ण ने दिव्यास्त्र का प्रयोग करके साम्ब को बांध लिया। साम्ब बन्दी करके कौरवों ने समझा, हमने विश्व विजय कर लिया है। अपनी कन्या लक्ष्मणा और साम्ब को लेकर वे राजमहल आ गये। यद्यपि साम्ब को बन्दी किया गया था; किन्तु दुर्योधन का भी साहस उन्हें कारागार ले जाने का नहीं था। सच बात है, तब तक यह निश्चय हो गया था कि कन्या अब दूसरे का वरण नहीं करेगी। स्वयं कौरवों के लिए समस्या हो गयी। क्या किया जाय। इतने विरोध के बाद साम्ब को कन्या ब्याह दी जाय, यह नाक कटने जैसी पराजय होगी और न ब्याही जाय तो कन्या किसी को स्वीकार करने को उद्यत नहीं। फिर साम्ब का क्या किया जाय। अब भीष्म से सलाह ली गयी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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