पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
62. नारायणास्त्र से रक्षा
युधिष्ठिर के मुख यह सुनकर कि अश्वत्थामा मर गया, आचार्य द्रोण ने अस्त्र नहीं फेंका था। वे युद्ध में लगे थे कि दिव्यास्त्र उन्हें भूल गये। उनका त्रोण भी रिक्त होने लगा था। उन पर धृष्टद्युम्न प्रचण्ड आक्रमण कर रहा था। सात्यकि, भीमसेन आदि भी उन्हीं पर टूट पड़े थे। भीमसेन ने फिर आचार्य को धिक्कारा। तब आचार्य ने धनुष डाल दिया। वे ध्यानस्थ होकर बैठ गये। ध्यान करते हुए उन्होंने देहत्याग किया। इस अवस्था में धृष्टद्युम्न ने उनका मस्तक काट दिया। पाचँ दिन युद्ध करके महाभारत युद्ध के पन्द्रह वें दिन दोपहर को द्रोणाचार्य मारे गये। आचार्य द्रोण के मारे जाने पर कौरव सेना भाग खड़ी हुई। अश्वत्थामा को अपने पिता की मृत्यु का पता लगा तो वह क्रोधोन्मत्त हो उठा। उसे पाण्डवों का धर्मात्मापन, युधिष्ठिर की सत्यवादिता, सब पाखण्ड लगा। अश्वत्थामा ने शपथपूर्वक समस्त पाञ्चाल एवं पाण्डवों को मारने की प्रतिज्ञा की। ‘मेरे पितापर प्रसन्न होकर भगवान नारायण ने उन्हें अपना अमोघ अस्त्र दिया था।' अश्वत्थामा ने दुर्योधनादि से कहा- ‘वह नारायणास्त्र पिता ने केवल मुझे दिया है। इसे सात्यकि, अर्जुन तो क्या, श्रीकृष्ण भी नहीं जानते। मैं इसका प्रयोग करके पाण्डवों का अभी नाश कर दूँगा।' केवल कर्ण अश्वत्थामा की इस डींग से प्रभावित नहीं हुआ। वह चुप था। कौरव सब प्रसन्न हो गये। अज्ञ अश्वत्थामा- उसे कहाँ पता था कि श्रीकृष्ण स्वयं ही नारायणास्त्र के अधिदेव हैं। उसे निष्प्रभाव करना उनके लिए कठिन हो नहीं सकता। अश्वत्थामा के वचन सुनकर कौरव सेना में उत्साह छा गया। वहाँ नगाड़े गूँजने लगे। अश्वत्थामा के नारायणास्त्र का प्रयोग करते ही आकाश मेघाच्छन्न हो उठा। प्रचण्ड पवन चलने लगा। पृथ्वी में भूकम्प आ गया और समुद्र उद्वेलित हो उठा। पर्वतों के शिखर टूट-टूटकर गिरने लगे। पाण्डव सशंक हो गये थे। आचार्य के वध से दु:खी अर्जुन धर्मराज युधिष्ठिर की भर्त्सना कर रहे थे। वे अपने को भी धिक्कार रहे थे कि उनके देखते-देखते आचार्य का मस्तक काटा गया। केवल भीमसेन क्रुद्ध थे। धृष्टद्युम्न तो अपना कर्म उचित ही मानता था। सात्यकि उसे डांटने लगे तो दोनों में विवाद हो गया। दोनों परस्पर मरने-मारने पर उतर आये। श्रीकृष्ण-अर्जुन को मध्य में पड़कर उन्हें शान्त करना पड़ा। अश्वत्थामा के उत्साह देने से कौरव युद्ध करने आ गये थे। अश्वत्थामा के नारायणास्त्र से सहस्त्र-सहस्त्र प्रज्वलित वाण, गोले, चक्र, गदा आदि प्रकट होकर आकाश में छा गये। इससे पाण्डव सेना भस्म होने लगी। अर्जुन अब भी उदासीन खड़े थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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