पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
93. उपसंहार
हस्तिनापुर में रह गये दो युवक-परीक्षित और वज्रनाभ। दोनों अनुभव रहित और पद में भले परीक्षित चाचा होते हों, वज्रनाभ से बड़े नहीं थे। महर्षि मार्कण्डेयन ने परीक्षित को शास्त्र-ज्ञान के शिक्षण का भार उठाया। परीक्षित ने गर्भ में ही श्रीकृष्ण साक्षात किया था। श्रीकृष्ण ने उनके मृत शरीर में अपना जीवन सञ्चारित किया था। उन्हें वे अन्त में भी श्रीव्यास नन्दन शुकदेव के रूप में आकर श्रीमद्भागवत रूपी अपनी वाङमय मूर्ति प्रदान करने वाले थे। जगद्गुरु पार्थ-सारथि के परम कृपा-पात्र परीक्षित। श्रीकृष्ण का तत्वज्ञान परीक्षित के माध्यम से संसार को सुलभ हुआ। वज्रनाभ तो श्रीकृष्ण की साक्षात परम्परा ही हैं। भले वे व्रज आकर उन श्रीनन्दन के पाद-पद्मों में अपना स्थान प्राप्त कर लें; किन्तु व्रजभूमि की श्रीकृष्ण विहार भूमियों का दर्शन-परिचय संसार को उनके अनुग्रह से ही प्राप्त हुआ। परीक्षित ने श्रीकृष्ण का ज्ञान दिया संसार को और व्रजनाभ ने उन लीलामय के धाम का सम्पर्क सुलभ कराया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज