पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
31. संजय द्वारा संदेश
अज्ञातवास का एक वर्ष भी पाण्डवों ने पूरा कर लिया। महाराज विराट ने अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के साथ अपनी पुत्री उत्तरा का विवाह कर दिया। इस विवाह में श्रीकृष्णचन्द्र बड़े भाई, सुभद्रादि के साथ विराट नगर पधारे। विवाह के पश्चात श्रीबलरामजी तो द्वारिका चले गये; किन्तु श्रीकृष्ण वहीं रुक गये। पाण्डवों को समाचार मिल गया कि कौरव सैन्य-संग्रह करने लगे हैं, अत: उनके भी समर्थक सेना लेकर विराट नगर आने लगे। द्वारिका से यादव महारथी सात्यकि अपनी निजी चतुरंगणी सेना लेकर आ गये। महाराज द्रुपद ने अपने पुरोहित को धृतराष्ट्र के पास भेजा। धृतराष्ट्र ने उसकी बात सुन ली और संजय के द्वारा उत्तर भेजने को कहकर उसे लौटा दिया। संजय धृतराष्ट्र का सन्देश लेकर विराट नगर आये। संजय ने आकर पाण्डवों के साथ सब सहायकों को एकत्र कर उनकी सभा में धृतराष्ट्र का जो सन्देश दिया उसमें कोई भी निश्चित बात नहीं कही गयी थी। उसमें केवल यह कहा गया था –‘हम सन्धि चाहते हैं। सन्धि ही शान्ति का सर्वोत्तम उपाय है।’ संजय के सन्देश में कहा गया था – ‘यदि कौरव युद्ध किये बिना तुम्हें अपना राज्य भाग न दे सकें तो भी अन्धक और वृष्षिवंशी राजाओं के राज्य में भीख माँगकर निर्वाह कर लेना अच्छा है; किन्तु युद्ध करके राज्य प्राप्त करना अच्छा नहीं।’ इस निर्लज्जतापूर्ण सन्देश में केवल पाण्डवों को उपदेश किया गया था कि –‘वे युद्ध करके नर-संहार न करें। धन-तृष्णा अनर्थकारी है।’ जब कोई सम्पत्ति दबाये बैठा हो और दूसरे का स्वत्व न देकर केवल उपदेश करे तो उसकी बात का कितना महत्व होता है, समझा जा सकता है। धर्मराज युधिष्ठिर ने संजय को उचित उत्तर देने के अनन्तर कह दिया – ‘यहाँ भगवान श्रीकृष्ण हैं, ये समस्त धर्मों के ज्ञाता, नीतिज्ञ, मनीषी हैं। यदि मैं सन्धि का परित्याग अथवा युद्ध करके अपने धर्म से भ्रष्ट होकर निन्दा का पात्र बन रहा हूँ तो ये भगवान वासुदेव अपने विचार प्रकट करें क्योंकि इन्हें दोनों पक्षोंका हित अभीष्ट है। ये प्रत्येक कर्म का अन्तिम परिणाम जानते हैं, इनसे श्रेष्ठ दूसरा कोई नहीं है। हमारे ये परम प्रिय हैं। मैं इनके वचन टाल नहीं सकता।’ अब श्रीकृष्णचन्द्र बोले – ‘संजय ! मैं जैसे पाण्डवों को विनाश से बचाना चाहता हूँ, उनको ऐश्वर्य दिलाना चाहता हूँ उसी प्रकार राजा धृतराष्ट्र के पुत्रों की भी अभ्युदय की कामना करता हूँ। मेरी एकमात्र इच्छा है कि दोनों पक्ष शान्त रहें। युधिष्ठिर शान्ति प्रिय हैं। लेकिन संजय जब धृतराष्ट्र अपने पुत्रों सहित लोभवश इनका राज्य भी हड़प लेना चाहते हैं तो कलह कैसे नहीं होगा ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज