पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
81. युधिष्ठिर का अनुताप
वृक्ष सब ऋतुओं में पुष्प–फलों से लदे रहते थे। गायें भरपूर दूध देती थीं। बड़ी-बड़ी दक्षिणा वाले यज्ञ किये उन्होंने। ग्यारह सहस्त्र वर्ष उन दूर्वादलश्याम, अरुणनयन, आजानुबाहु, नित्यकिशोर, सिंहस्कन्ध श्रीराम ने अयोध्या का राज्य किया; किन्तु उन्हें भी अन्त में पृथ्वी को छोड़ना पड़ा। राजा भगीरथ ने गंगाजी को अपनी पुत्री बनाकर पृथ्वी पर उतारा। यज्ञानुष्ठान करते इतना दान दिया कि उसकी गणना ही कठिन है; किन्तु वे भी अन्त में परलोक पधारे। सृंजय ! उन राजा दिलीप का भी अब नाम ही सुना जाता है। जिनके महान कर्मों का ब्राह्मण अब तक वर्णन करते हैं। उनके यज्ञ में देवता प्रत्यक्ष भाग लेने आते थे। यज्ञयूप तथा सब पात्र स्वर्ण के थे। उनके यज्ञ में छ: सहस्त्र देवता, गन्धर्व तो नृत्य करते थे। वे सत्यवादी दिलीप, जिनके भवन में वेदध्वनि, धनुष के प्रत्यंचा का घोष और याचकों का कोलाहल कभी विरमित नहीं होता था, स्वर्ग सिधार गये। राजा मान्धाता का नाम सभी जानते हैं। इन्द्र ने अपनी तर्जनी से झरती सुधा पिलाकर उन्हें पाला था। उस महान पराक्रमी ने अंगार, मरुत्तगण, अंग और वृहद्रथ को भी परास्त कर दिया था। सूर्य के उदय होने से अस्त होने तक की समस्त पृथ्वी मान्धाता की थी। सैकड़ों अश्वमेध एवं राजसूय यज्ञ उन्होंने किये। दस योजन लम्बे और एक योजन ऊँचे स्वर्ण के मत्स्य बनवाकर उन्होंने दान किये। ऐसे महान पराक्रमी को भी मृत्यु ने नहीं छोड़ा। परम भागवत नाभाग के पुत्र राजा अम्बरीष का नाम किसने नहीं सुना होगा। उनके यज्ञ में मूर्धाभिषिक्त नरेश सहर्ष सेवकों का कार्य करते थे। उस यज्ञ में किंचित सेवा भी जिन्हें मिली, वे भी देवयान मार्ग से हिरण्यगर्भ के लोक में जाने के अधिकारी हो गये। ऐसे महत्पुरुष को भी काल ने नहीं छोड़ा। चित्ररथ के पुत्र शशबिन्दु के एक लाख रानियाँ थीं और प्रत्येक के दस-दस पुत्र थे। उन कुमारों ने भी सौ-सौ विवाह किये। अपार दहेज आया पुत्रों के विवाह में और वह सब धन राजा ने अश्वमेध यज्ञ करके दान कर दिया। इतना काम-भोग, इतना अर्थ और धर्म; किन्तु मृत्यु से वह भी बचा नहीं। अमूर्तरय के पुत्र राजा गय के ऊपर प्रसन्न होकर अग्निदेव ने उन्हें अक्षय धन तथा धर्म में अविचल श्रद्धा का वरदान दिया था। सहस्त्र वर्ष तक पूर्णिमा, अमावस्या तथा चातुर्मास्य में गय ने अखण्ड यज्ञ तथा दान किया। प्रतिदिन प्रात:काल वे असंख्य गोदान करते थे। उनके धन-दान की कोई तुलना नहीं; किन्तु मरना उनको भी पड़ा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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