पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
81. युधिष्ठिर का अनुताप
महाराज ! आप एक सामान्य व्यक्ति नहीं हैं। सामान्य व्यक्ति के कार्यों का प्रभाव भी उसके स्वजन सम्बन्धियों पर पड़ता है। आप तो इस समय सम्पूर्ण राज्य के सम्राट हैं। अत: आप केवल अपने को लेकर क्यों विचार करते हैं? सम्पूर्ण प्रजा को भी लेकर आप सोचें।' 'हृषीकेश ! मेरी बुद्धि कुण्ठित हो गयी है।' युधिष्ठिर रो पड़े– 'शोक ने मुझे दृष्टिहीन बना दिया है। आप परम प्रकाशस्वरूप हैं ! आप मुझे प्रकाश प्रदान करें ! मैं आपकी आज्ञा का पालन करूँगा।' श्रीकृष्ण के लिये यह समपर्ण पर्याप्त है। उन्होंने युधिष्ठिर को दृष्टान्त देकर समझाया– 'युद्ध में शत्रु के शस्त्रों से मारे गये शूर उत्तम गति प्राप्त करते हैं, यह आप जानते हैं, यह आप जानते हैं। अत: उनके सम्बन्ध में कोई चिन्ता आपको नहीं करनी चाहिए। राजा सृंजय पूर्वकाल में पुत्र के मरने से शोक संतप्त थे। उन्हें देवर्षि नारद ने जो कुछ सुनाया था, उसे आपको मैं सुना रहा हूँ। देवर्षि ने राजा सृंजय से कहा था- 'सुख-दु:ख से कोई मुक्त नहीं है। काल ने किसी को नहीं छोड़ा है। सृंजय ! प्राचीन काल में राजा सुहोत्र अत्यन्त अतिथि-वत्सल थे। उनके राज्य में इन्द्र ने सरिताओं में स्वर्ण बहाया था और कछुए, केकड़े, मगर, घड़ियाल, मछलियाँ तक स्वर्ण की बना दी थीं, अब तक इन प्राणियों के सुनहले वंशधर बचे हैं और नदियों की रेणुका में कुछ स्वर्ण मिलता है। राजा सुहोत्र ने वह सब स्वर्ण यज्ञ में दान कर दिया था। वे तथा उनका पुत्र, अर्थ, धर्म, काम तथा मोक्ष में भी तुमसे बहुत श्रेष्ठ थे, परन्तु वे भी मर गये। उशीनर के पुत्र राजा शिवि की बात तुमने सुनी होगी। वैसा उदार दानी भी अजर नहीं हुआ। काल उन्हें भी खा गया। दृष्यन्त के पुत्र भरत ने सहस्त्र अश्वमेध और सौ राजसूय यज्ञ किये थे। सम्पूर्ण पृथ्वी का वह एकछत्र शासक भी अन्त में मृत्यु से नहीं बचा। दूसरों की बात तो दूर, मर्यादापुरुषोत्तम दशरथ-नन्दन भगवान राम प्रजा को पुत्र से भी प्रिय मानते थे। उनके राज्य में न कोई विधवा थी, न अनाथ– मेघ समय पर वर्षा करते थे। अन्न समय पर पकता था। अकाल, अग्नि, जल, रोग आदि का भय लोग भूल ही गये थे। सबकी आयु स्वस्थ सबल रहते सहस्त्रों वर्ष की हो गयी थी। विवाद स्त्रियों में भी नहीं होता था। प्रजा धर्म तत्पर थी। सब लोग सदा निर्भय, पूर्णकाम, सन्तुष्ट, सत्यवादी तथा सत्कर्म में लगे रहते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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