पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
73. अर्जुन का रथ भस्म
पाण्डवों के युद्ध-शिविर में भी सामग्री थी, धन था; किन्तु वह कम भले न पड़ा हो, अत्यल्प ही तो था। महाराज विराट ने जो अभिमन्यु के विवाह में दहेज दिया, महाराज द्रुपद तथा दूसरे सम्बन्धियों से प्राप्त सहायता तथा इन श्रीकृष्णचन्द्र का स्नेह-दान। पाण्डव तो वनवास करके आये थे। उनके पास अपना क्या था। सेना जब विजय करके शत्रु-शिविर में प्रवेश करती है, उच्छृंखल हो जाती है। उस समय उस पर अंकुश नहीं रखा जा पाता; किन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ। सब हर्ष से उछलते, सिंहनाद करते रहे; किन्तु न तो कोई कुछ लूटने में लगा, न किसी दास-दासी को किसी ने तंग किया था। सब लोग बहुत थके थे। अब सबको विश्राम की अत्यधिक आवश्यकता थी। शत्रु-शिविर पर अधिकार करके सब अपने शिविर पहुँचे और रथों को खोलने में लग गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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