पार्थ सारथि -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
68. कर्ण मारा गया
कर्ण धर्म को रक्षार्थ पुकारता, इसके स्थान पर बुद्धि भ्रम के कारण धर्म को कोसने लगा। वह धर्म की निदा करने लगा। धर्म की निदा तो व्यक्ति के ओज, तेज, वीर्य, श्रीसब का क्षय ही करती है। श्रीकृष्ण अर्जुन को बारबार उत्तेजित कर रहे थे। कर्ण भी अत्यन्त क्रोध में भरा उग्रतम आघात कर रहा था। इतने में कर्ण के रथ का पहिया पृथ्वी में और धँस गया। अब रथ गतिहीन हो गया। शल्य भले सारथि बन गये थे; किन्तु रथ का पहिया निकालने को उसने कहा नहीं जा सकता था। कर्ण स्वयं रथ से कूदा और पहिये को निकालने का प्रयत्न करने लगा। इस अवसर पर कर्ण ने कातर होकर अर्जुन से कहा- ‘धनंजय ! तुम बहुत बड़े धनुर्धर हो ! तुम्हें धर्म का सम्यक बोध है। जब तक मैं यह पहिया निकाल लूँ, तब तक क्षण भर को रुक जाओ। युद्ध में भागते, भयातुर, शरणागत, प्राणरक्षा को पुकारते, शस्त्रहीन, कवच कट गये योधा पर वीर पुरुष प्रहर नहीं करते। तुम दिव्यास्त्रों के ज्ञाता हो। उदार पुरुष हो। संसार के श्रेष्ठतम शूर हो। तुम रथ पर हो, मैं भूमि पर हूँ। में आहत हूँ, मेरा कवच कट गया है, इस समय घबराया हूँ। अतः मेरे ऊपर प्रहार उचित नहीं है।’ ’धन्यवाद ! धन्यवाद सूत पुत्र ! तुम्हें सौभाग्य से धर्म का स्मरण तो आया !’ श्रीकृष्ण अत्यन्त व्यंगपूर्वक बोले- 'विपत्ति में पड़ने पर कुपुरुष धर्म की निन्दा करते हैं। अपने कुकर्मां का भी कुछ स्मरण है तुम्हें ? जो नीच पुरुष दूसरों को अधर्मपूर्वक मारता है, उसे संकट में पड़ने पर धर्म की सहायता नहीं मिलती। उसे धर्म ! धर्म ! पुकारने का कोई अधिकार नहीं।' धर्म के परमप्रभु अच्युत ने गिनाना प्रारम्भ कर दिया- 'पाण्डव बारह वर्ष वन में रहकर, एक वर्ष अज्ञातवास करके लौटे थे। उनका राज्य तुमने लौटाने नहीं दिया, तब तुम्हारा धर्मज्ञान कहाँ गया था ? भीमसेन को विष देने, सर्पो से डँसवाने में तुमने सम्मति दी थी तो कहाँ गया था तुम्हारा धर्म ? वारणावत के लाक्षागृह में रात को सोते पाण्डवों को अग्नि लगाकर डालने का तुमने प्रबन्ध किया तब तुम्हारा धर्म कहाँ था ? तुम जब कौरवों की द्यूत-सभा में द्रौपदी को कटुवचन कह रहे थे और उसे घूर-घूर कर देख रहे थे तो बड़े धर्मात्मा थे ? ‘तुम आज युद्ध-धर्म की बात कर रहे हो; किन्तु अभिमन्यु बालक था, अकेला था, तुम अनेक महारथियों ने उसका रथ नष्ट करके घेरकर मार डाला तो तुम्हारा धर्म कहाँ था ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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