श्रीनारायणीयम्
द्वयशीतितमदशकम्
विभो! आपने कई बार (इंद्रयाग-निवारण, पारिजातहरण, खाण्डवदाह आदि में) इन्द्र को, नन्द जी का हरण करने पर वरुण को, गुरुपुत्रों को लाते समय यमराज को, दावाग्नि पान के अवसर पर अग्नि को, बछड़ों की चोरी करने पर ब्रह्मा को और बाणासुर के इस समर में शंकर जी को पराजित किया। अतः आपके इस अवतार का उत्कर्ष सभी देवों से बढ़कर है, इसलिए इस अवतार की जय हो।।9।।
तत्पश्चात् ब्राह्मण के कोपजनित शाप से गिरगिट योनि को प्राप्त हुए महाराज नृग का उद्धार करके आपने उन्हें स्वर्ग पहुँचाया। इसी बहाने आपने स्वजनों को सर्वश्रेष्ठ द्विजभक्ति का उपदेश दिया। पवनेश्वर! मेरी रक्षा कीजिए।।10।।
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