श्रीनारायणीयम्
एकोनचत्वारिंशत्तमदशकम्
वसुदेव जी द्वारा योगमाया का लाया जाना
यदुकुलतिलक वसुदेव जी आपको उठाये हुए आगे बढ़ रहे थे। मार्ग में उन्हें कलिन्दकन्या यमुना का दर्शन हुआ, जो आकाश को चूमने वाली लहरों से युक्त जल से भरी थीं। परंतु आश्चर्य है, वह अगाध जल ऐन्द्रजालिक द्वारा प्रकट की गयी जलराशि की तरह उसी क्षण प्रपद (पादाग्रभाग)- तक परिमाण वाला हो गया।।1।।
तदनन्तर जिसमें गोपिकाएँ निद्रामग्न थीं, बालिका मन्द-मन्द रुदन कर रही थी और जिसके कपाट खुले हुए थे, नन्दगोप की उस वाटिका (बाड़ी या घर)- में प्रवेश करके वसुदेव जी आपको यशोदा की प्रसव-शय्या पर रखकर और उस स्थान से कपटकन्या योगनिद्रा को उठाकर वेगपूर्वक अपने नगर को लौट आये।।2।। |
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