महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
अर्जुन का वनवास
उलूपी का ऐसा प्रेम देखकर अर्जुन के मन में भी सच्चा भाव जागा। उन्होंने नाग कन्या उलूपी की इच्छा रखने के लिए उसी के राज्य के एक वन में निवास किया और फिर यह कहकर हरिद्वार लौट आए कि उलूपी पता नहीं हम तुम अब कब मिल सकें, परन्तु मेरी याद दिलाने के लिए तुम्हारी कोख से जो बेटा होगा वह महाप्रतापी होगा। हरद्वार से गंगा के किनारे घूमते हुए बंगाल और असम की यात्रा अर्जुन ने कर डाली। उधर से कलिंग देश पार करके एक ऐसे नगर में पहुँचे जो समुद्र तट पर था और उसका नाम मणिपुर था। अर्जुन ऐसा वीर भला वहाँ पहुँचे और लोगों की दृष्टि में न पड़े, यह असम्भव बात है। लेकिन यहाँ तो एक और उल्टी बात हो गई। सब महाबली अर्जुन को देखते थे। हाट में एक जगह राजकुमारी चित्रांगदा का सुन्दर रूप देखकर महाबली अर्जुन ऐसे मुग्ध हुए कि सीधे राजा चित्रवाहक के पास जाकर अपना परिचय दिया और कहा कि मैं आपकी कन्या से विवाह करना चाहता हूँ। छोटे-छोटे राज्य के लोग बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं से किसी तरह अपना मेलजोल बढ़ाकर या सम्बन्ध जोड़कर स्वयं भी सम्पन्न और शक्तिशाली बना करते थे। राजा चित्रवाहन ने प्रसन्नतापूर्वक अर्जुन से अपनी बेटी चित्रांगदा का विवाह कर दिया। सम्पन्न ससुराल में कुछ दिनों सुख चैन के दिन बिताकर चित्रांगदा जब गर्भवती हो गई तो अर्जुन ने कहा- "हे प्रिय, पोता न होने पर दोहता ही अपने नाना की सम्पत्ति का अधिकारी होता है। मैं तुम्हारे पिता के राज्य का भावी उत्तराधिकारी तुम्हें देकर चला जाता हूँ।" मणिपुर से विदा लेकर अर्जुन घूमते-घामते सीधे गुजरात प्रभास क्षेत्र में पहुँच गये। मणिपुर से विदा होकर दक्षिणी समुद्र तट पर अनेक तीर्थों के दर्शन करते हुए वे पश्चिमी समुद्र तट की ओर मुड़ गए और केरल, कर्नाटक, गोमान्तक, रत्नागिरि, महाराष्ट्र वगैरह के तीर्थों में घूमते हुए गुजरात पहुँच गये। वहाँ प्रभास तीर्थ में वे स्नान करने और सन्तों के दर्शन करने के लिए गये। अर्जुन के आने की खबर तो चुटकी बजाते यों उड़ा करती थी। उनके वहाँ पहुँचने के कुछ ही दिनों में यह सूचना उनके ममेरे भाई यादव गणतंत्र के अध्यक्ष द्वारकाधीश श्रीकृष्ण वासुदेव को भी मिल गई। श्रीकृष्ण अपने समय के अनोखे व्यक्तित्वशाली महापुरुष थे। बहुत छुटपन ही से उनकी नेतृत्व शक्ति के प्रमाण मिलने लगे थे। वे श्रेष्ठ वीर, श्रेष्ठ विचारक और राजनीति के पण्डित थे। बहुत छोटे-छोटे रजवाड़ों के आपसी झगड़े नीति से सुलझाते रहने के कारण, स्वयं अपने अन्धक और विणु कुल के यादवों की आपसी पार्टी-बाजियों को भी अपनी चतुराई और सुनीति से गिराया करते थे। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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