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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
विराट नगर में पाण्डव
अपनी योजना के अनुसार पाण्डव लोग यमुना नदी के दक्षिण तट पर पहुँचे। वहाँ से उन्होंने जंगल में भटक जाने की ऐसी तरकीब निकाली कि कौरवों के जासूस उस जगह के बाद उनका पता न पा सकें। वे कभी पहाड़ों और कभी जंगलों में शिकार करते हुए अनेक रमणीय स्थानों में घूमते हुए पांचाल देश के दक्षिणी भाग से यकृल्लोम और शूरसेन प्रदेशों की बीच से होकर मत्स्यों के राज्य की राजधानी की ओर बढ़े। इस चक्करदार मार्ग से जाते हुए बेचारी द्रौपदी अक्सर थक-थक जाती थी। युधिष्ठिर की आज्ञा से अर्जुन द्रौपदी को अपने कन्धे पर बिठाकर चलते थे। चिन्ता और अनेक कष्ट सहने के कारण पाण्डवों के चेहरे फीके पड़ गये थे, उनके बाल और दाढ़ियां भी बढ़ गई थीं। इस तरह देखने में ये राजकुमारों से अधिक जंगली शिकारी ही लगते थे। अपने आप को छिपाये रखने के लिए इनकी यह वेश-भूषा और दशा उनके लिए इस समय वरदान साबित हुई। सारे रास्ते में उन्हें कोई पहचान न पाया। कौरवों के जासूस अब उनकी हवा भी नहीं पा सकते थे। दुर्योधन, दुःशासन आदि लाख अपने भेदियों पर चिल्लाये पर पाण्डवों की चतुराई के आगे उनकी दाल न गली। विराट नगर पहुँचते-पहुँचते शाम हो गई। संयोग से वे नगर के शमशान की ओर पहुँचे। युधिष्ठिर ने अपने भाईयों से कहा- "हथियार लेकर नगर में जाना ठीक नहीं होगा। अर्जुन भले ही इस समय देखने में जंगली शिकारी लगते हों, पर उनका गाण्डीव धनुष देखते ही लोगों को उन पर शक हो जायगा। इसी तरह भीम की गदा भी किसी से छिपी नहीं रह सकती। मैं चाहता हूँ कि यहाँ एकान्त में हम लोग अपने हथियारों को पहले किसी सुरक्षित स्थान पर रख दें तब नगर में प्रवेश करें।" अपने धनुष, तरकस, गदा, तलवार आदि हथियार उन्होंने कपड़ों में इस तरह से बांधे कि देखने में वह कफ़न से लिपटी हुई लाश की तरह लगते थे। नकुल ने आसपास के वृक्षों की खोह में हथियार छिपाने के लिए उचित जगह की तलाश की। संयोग से एक शमी वृक्ष की ऊपरी डाल पर उन्हें खोखली जगह मिल गई, पाण्डवों ने उसी खोखली डाल में अपने हथियारों को रखने का निश्चय किया। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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